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ने एक वचन कहा था। उसने कहा था, पहला और अंतिम क्रिश्चियन सूली पर लटका कर मार डाला गया-पहला और अंतिम क्रिश्चियन! उसने कहा था, क्राइस्ट पहला और अंतिम क्रिश्चियन था। उसके बाद कोई क्रिश्चियन नहीं हुआ। मैं आपको स्मरण दिलाऊं, महावीर के बाद भी कोई जैन नहीं हुआ।
तो कृष्ण के बाद या बुद्ध के बाद, सबके साथ वैसी घटना घटी है। और जो उनके पीछे दिखाई पड़ते हैं, वे उनके पीछे नहीं हैं। जो उनके पीछे मालूम पड़ते हैं, वे उनके पीछे नहीं हैं। महावीर के पीछे होना आसान नहीं है। और इस भूल में कोई न पड़ जाए कि मैं जैन घर में पैदा हो गया तो महावीर के पीछे हो गया। पागल, अगर बातें इतनी सस्ती होती, अगर मामले इतने आसान होते. तो सब हल हो गया होता।
धार्मिक होना इस जगत में सबसे बड़े दुस्साहस की बात है।
धार्मिक होना पैदाइश से संबंधित नहीं है। धार्मिक होने के लिए तो दूसरा जन्म खुद लेना होता है। एक जन्म है जो मां-बाप से मिलता है, वह कोई जन्म है! वह केवल शरीर का जन्म है। एक दूसरा जन्म है, जो खुद के संकल्प और साधना और श्रम से उत्पन्न करना होता है। वही वास्तविक जन्म है। उसके बाद ही, उसके बाद ही व्यक्ति धार्मिक बनता है। तो कोई इस भूल में न रहे कि महावीर के मानने वालों के घर में पैदा हो गए हैं, तो हम जैन हो गए हैं।
महावीर के घर में पैदा होने से कोई जैन नहीं होता।
उपनिषदों में एक ऋषि हुआ, उद्दालक। उसका पुत्र जब अध्ययन करके शास्त्रों का घर वापस लौटा, सारे शास्त्रों का अध्ययन करके वापस लौटा, तो गरूर से और अहंकार से भरा हुआ आया। पंडित से ज्यादा प्रगाढ़ अहंकार और किसका होता है? वह गरूर से और अहंकार से भरा हुआ घर में आया। पिता ने देखा, अहंकार की सीमा नहीं है! पिता ने पूछा, सब पढ़ आए? उसने कहा, मैं सब पढ़ आया, जो भी पढ़ने योग्य था, सब पढ़ आया। जो भी पढ़ने जैसा था, सब पढ़ आया। सब शास्त्र, सब वेद पढ़ कर लौटा हूं।
उसके पिता ने आंख नीची कर ली और उसने कहा कि जहां तक मैं देख रहा हूं तुम्हें, मुझे दिखाई पड़ता है कि जो पढ़ना था, वही तुम छोड़ कर सब पढ़ आए हो। उसने पूछा, क्या है वह? उसके पिता ने कहा, जो शास्त्रों में नहीं लिखा है, जो वेदों-पुराणों में नहीं लिखा है, जो कभी लिखा नहीं जा सका, जो कभी लिखा नहीं जा सकेगा, उसे जो पढ़ लेता है, वही तो पढ़ता है। और उसे जो पढ़ लेता है, उसे जान कर वह सब जान लेता है। तो तुम अगर किताब ही पढ़ कर लौटे हो, तो अभी पढ़ना तुम्हारा शुरू भी नहीं हुआ।
उसने कहा, उसे मैं कैसे जानूं? और उसे जानना क्या जरूरी है?
उसके पिता ने कहा, हमारे परिवार में अब तक ब्राह्मण होते रहे हैं, ब्राह्मण-बंधु नहीं। उसके पुत्र ने पूछा, इसमें फर्क क्या है? उसने कहा, जो ब्राह्मण के घर में पैदा होने से ब्राह्मण कहलाए, वह ब्राह्मण-बंधु है। और जो ब्रह्म को जानने से ब्राह्मण कहलाए, वह ब्राह्मण है।
मुझे बात ठीक लगती है। जो क्रिश्चियन के घर में पैदा होने से क्रिश्चियन कहलाए, वह क्रिश्चियन-बंधु है। जो जैन घर में पैदा होने से जैन कहलाए, वह जैन-बंधु है। जैन होना, क्रिश्चियन होना बड़ी दूसरी बातें हैं।
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