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वह एक अंतर्दृष्टि देगा और एक बहुत सड़ी-गली जो धारणा महावीर की साधना के पीछे बन गई है परंपरा में, उससे मुक्त होने में सहयोगी होगा।
एक युवक भिक्षु और एक वृद्ध भिक्षु एक नदी के किनारे से निकलते थे, नदी पार करते थे। एक युवती भी नदी पार करने को ठहरी थी। लेकिन पहाड़ी नाला और तेज धार और उसका साहस नहीं था कि नदी को पार करे। उस वृद्ध भिक्षु ने सोचा, हाथ का सहारा दे दूं और नदी पार करा दूं।
लेकिन जैसे ही खयाल आया, हाथ का सहारा दे दूं, भीतर की सोई हुई स्त्री के प्रति जो वासना और कामना है, वह जग गई। हाथ के स्पर्श की कल्पना से भीतर के सोए बहुत से स्वप्न सजग हो गए। बहुत सा दमित, बहुत सा सप्रेस्ड जो था स्त्री के प्रति, वह सब फिर से साकार होकर उठ आया। वह घबड़ाया बहुत। वर्षों से स्त्री के प्रति विचार नहीं उठा था। अपने को झिड़का कि मैंने भी कहां की नासमझी की बात सोची! मुझे प्रयोजन? लोग नदी पार होंगे, होते रहेंगे, मुझे क्या करना है ? मैं क्यों अपना जीवन इसको नदी पार कराने के कारण बिगाडूं?
वह आंख झुका कर नदी पार करने लगा। उसने उस लड़की को सहारा नहीं दिया। लड़की को सहारा इसलिए नहीं दिया, इसलिए नहीं कि लड़की कोई सहारा देने में दिक्कत देती। सहारा इसलिए नहीं दिया कि सहारे की कल्पना ने ही, भीतर जो स्त्री का रूप था, उसे सजग कर दिया। वह आंख झुका ली उसने।
लेकिन आंख झुकाने से कोई रूप समाप्त होते हैं? आंख झुकाने से तो वे और रम्य, और सुंदर हो जाते हैं। आंख बंद कर लेने से कोई रूप नष्ट होते हैं? आंख बंद कर लेने से तो वे और स्वर्णिम, और स्वर्गीय हो जाते हैं। वह आंख बंद करके घबड़ाया, और भगवान का स्मरण करता हुआ नदी पार होने लगा।
___ पीछे उसका एक युवक भिक्षु भी आता था। नदी पार करके उसे खयाल हुआ, कहीं वह पागल लड़का, वह भी इसी सेवा और सहायता की भूल में न पड़ जाए। तो उसने लौट कर देखा, वह लड़का उसको कंधे पर बिठा कर नदी पार कर रहा है! उसको तो सारे बदन में आग लग गई। वह तो कल्पना भी नहीं कर सका कि मैं वृद्ध हुआ हूं, और यह तो युवा है और युवती को कंधे पर बिठा कर पार कर रहा है! उसे कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करे और क्या न करे। गुस्से में बहुत देर तक बोला नहीं। जब दोनों आश्रम में प्रवेश करते थे, सीढ़ियों पर रुक कर उसने उस युवक से कहा कि सुनो, जाकर गुरु को कहूंगा, और उसका तुम्हें प्रायश्चित्त और दंड भोगना पड़ेगा। वह लड़का बोला, कौन सी भूल हुई? उसने कहा, उस लड़की को तुमने कंधे पर क्यों उठाया? उस युवक ने कहा, मैं उसे नदी के किनारे ही कंधे से उतार दिया था, आप तो उसे अभी भी लिए हुए हैं।
यह जो आदमी उसे कंधे पर लिए हुए है, यह किस कंधे पर लिए हुए है? और क्या हम अपने संसार को कंधे पर नहीं लिए हुए हैं? क्या संसार कहीं बाहर है? क्या उन मकानों में और उन बच्चों में और उन वृत्तियों में संसार है जो बाहर हैं? या कि संसार को हम कहीं किसी काल्पनिक कंधे पर लिए हुए हैं?
संसार को छोड़ कर नहीं भागना, संसार को कंधे से उतारना है।
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