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भीतर प्रकाश को और प्रभु को पैदा नहीं किया जा सकता। मनुष्य यूं ही हिंसक नहीं है। उसके पीछे हिंसा में उसके चित्त में जड़ें हैं, उन जड़ों को अलग कर देना जरूरी है, तो हम एक अहिंसक मनुष्य का निर्माण कर सकते हैं। अहिंसक मनुष्य का निर्माण ही इस जगत के लिए एकमात्र त्राण हो सकता है।
महावीर ने कहा था, अहिंसा एकमात्र त्राण है। यह बात इतनी सच कभी भी नहीं थी । यह बात पहली बार परिपूर्ण सत्य हुई है । अहिंसा के अतिरिक्त आज कोई मार्ग नहीं है। मैं अभी कहा एक जगह : महावीर या महाविनाश, दो के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।
पहली बार इतिहास ने हमें ऐसी जगह लाकर खड़ा कर दिया, जहां महावीर और उनकी अहिंसा एकमात्र जीवन का पर्याय बन गई है। हिंसा को चुनना अब मृत्यु को चुनना है। अब हिंसा और मृत्यु में कोई फासला और फर्क नहीं है। अब अहिंसा को चुनना जीवन को चुनना है। वे लोग जो जीवन चाहते हैं, वे लोग जो जीवन का भविष्य चाहते हैं, उन्हें अहिंसा को अपने में जन्माए बिना कोई चारा नहीं है।
इस अहिंसा पर क्या हम करें? कैसे यह पैदा हो जाए? कहां है मनुष्य में हिंसा की जड़ ? कहां है मनुष्य में वह प्यास और वह सुख, जो दूसरे को पीड़ा और दूसरे के विनाश से तृप्त होता है ? कौन है मनुष्य के भीतर ऐसा भूखा, जो दूसरे के विनाश में रस लेता है? उसे पहचानना, उस भूख को पकड़ लेना जरूरी है।
पूर्ण इकाई नहीं है। मनुष्य परिपूर्ण विकसित प्राणी नहीं है। मनुष्य केवल संक्रमण है। मनुष्य केवल बीच की एक कड़ी है - पशु और प्रभु के बीच | मनुष्य के भीतर दोनों संभावनाएं हैं— नीचे गिर कर पशु हो सकता है, ऊपर उठ कर प्रभु हो सकता है। और इसे मैं मनुष्य की गरिमा और गौरव मानता हूं। मैं अभी कहा एक जगह, मैंने लोगों से कहा कि तुम पाप कर सकते हो, यह तुम्हारी गरिमा है, यह तुम्हारा गौरव है। तुम पाप कर सकते हो, इसलिए तुम पवित्र भी हो सकते हो । जो पाप नहीं कर सकता, पवित्र भी नहीं हो सकता । तुम आत्मघात कर सकते हो...। दुनिया में कोई पशु मनुष्य के सिवाय आत्मघात नहीं कर सकता। कहीं स्युसाइड नहीं हो सकती मनुष्य को छोड़ कर । अकेला मनुष्य आत्महत्या कर सकता है।
मैं मानता हूं कि गौरवशील हो कि आत्महत्या कर सकते हो, क्योंकि जो आत्महत्या कर सकता है, वह परिपूर्ण जीवन पा सकता है। जो नीचे गिर सकता है गहराइयों में, अंधेरे की गर्तों में, और पाप की और नरक की सड़ांध में, वही केवल पवित्रता के धवल शिखरों को छू सकता है । नीचे गिरने की हमारी क्षमता हमारे स्वातंत्र्य की महिमा का प्रतीक है।
इसलिए मैं यह नहीं कहता कि नीचे गिर जाने की क्षमता बुरी है । वह केवल स्वातंत्र्य है, चुनाव की बात है। मनुष्य अकेला प्राणी है सारी जमीन पर, जो अपने जीवन के निर्माण के लिए स्वतंत्र है। इतना स्वतंत्र है कि निम्नतम हो सकता है, इतना स्वतंत्र है कि श्रेष्ठतम हो सकता है। मनुष्य केवल एक संक्रमण है, सारे पशु पूर्ण इकाइयां हैं। किसी पशु में पशुता के ऊपर उठने की क्षमता नहीं है, किसी पशु में पशुता के नीचे गिरने की क्षमता भी नहीं है । वह थिर इकाई है, रुकी हुई। प्रवाहमान नहीं, तरल नहीं। मनुष्य तरल इकाई है। मनुष्य तरलता है, लिक्विडिटी है। उसके भीतर प्रवाह की, नीचे-अ - ऊपर उठने की क्षमता है।
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