________________
चित्त लीन, विलीन होगा - आप अपने को जानेंगे, अपना साक्षात करेंगे । और कैसे आनंद की ज्योति वहां अनुभव होगी, कैसे प्रकाश से वहां भर जाएंगे, कैसी घनीभूत शांति में वहां उतर जाएंगे, उसे शब्द में कहने का कोई उपाय नहीं है।
महावीर ने कहा है, उस अनुभूति को कहने के पूर्व शब्द निवृत हो जाते हैं। महावीर ने कहा है, उसे कहने को कोई शब्द नहीं हैं। जिसे निःशब्द में पाया जाता हो, उसे कहने के शक्य कोई शब्द नहीं होते। जिसे चित्त को खोकर पाया जाता हो, उसे कहने का चित्त के द्वारा कोई मार्ग नहीं होता है। मैं उस संबंध में कुछ नहीं कहूं, आज तक कभी किसी ने कोई कुछ कहा नहीं है। लेकिन उस तरफ इशारे किए गए हैं, उस तरफ इंगित किए गए हैं। और महावीर इस जमीन पर, इतिहास में जो बड़े से बड़े इशारे किए गए हैं, उनमें से एक इशारे हैं। उनकी अंगुली उठी है उस सत्य की तरफ। लेकिन हम नासमझ होंगे अगर उस अंगुली की पूजा करने लगें और उस तरफ न देखें जहां के लिए अंगुली उठी है। लोग महावीर की पूजा कर रहे हैं! महावीर केवल एक इशारे हैं उस आत्म - सत्ता की ओर, जो सबके भीतर विराजमान है।
वहां जापान में एक मंदिर है, उसकी बात कह कर अपनी चर्चा को पूरा करूंगा।
वहां जापान में एक मंदिर है, उसमें बुद्ध की प्रतिमा नहीं है। उस मंदिर में केवल अंदर एक अंगुली बनी हुई है बुद्ध की, ऊपर एक चांद बना हुआ है। लोग जाकर हैरान होते हैं और लोग जाकर पूछते हैं, यह क्या है? नीचे बुद्ध का एक वचन खुदा हुआ है । बुद्ध ने कहा है, मैंने अंगुली दिखाई है चांद की तरफ, लेकिन मैं जानता हूं कि तुम नासमझ हो, चांद को न देखोगे और मेरी अंगुली की पूजा करोगे ।
महावीर, बुद्ध, क्राइस्ट और कृष्ण इशारे हैं। उनकी पूजा नहीं करनी, उस तरफ देखना है, जिस तरफ वे इशारे हैं । और उस तरफ कोई और नहीं, आप हो । उस तरफ कोई और नहीं, मैं हूं। वह इशारा किसी और की तरफ नहीं, हमारी अंतरात्मा की ओर है।
अगर महावीर जयंती के इस पवित्र स्मरण दिवस पर एक बात आपके विचार में पैदा हो जाए कि भीतर की तरफ देखना है, तो सारा जीवन सार्थक हो सकता है। उसके पूर्व न कोई सार्थकता है, न कोई आनंद है, न कोई शांति है, न कोई जीवन है। उसके पाने के बाद सारा जीवन अमृत में, सच्चिदानंद में परिणत हो जाता है।
मेरी बातों को इतनी प्रीति से सुना है, उसके लिए बहुत - बहुत अनुगृहीत हूं और सबके भीतर बैठे हुए परमात्मा को प्रणाम करता हूं, और आशा करता हूं कि आज नहीं कल, वह जो प्रसुप्त है, जागेगा और हम आनंद के परम जीवन के अनुभव को उपलब्ध हो सकेंगे । पुनः
पुनः आपका आभार ।
51