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प्रस्तावना
को संवत् १७६३ की एक प्रति मिली है, उसमें पं० टोडरमल जी के पठनार्थ प्रतिलिपि की गई—ऐसा स्पष्ट उल्लेख मिला है। यदि उस समय कवि की मायु १५ वर्ष की भी मान ली जावे तो भी उनकी मायु ४५ वर्ष की होनी चाहिये ।
टोडरमल ने सर्वप्रथम रहस्यपूर्ण चिट्ठी लिखी। इस अकेली चिट्ठी से ही पता चलता है कि उनकी ख्याति राजस्थान को पार करके पंजाब तक पहुंच गई थी। उन्होंने गोम्मटसार, त्रिलोकसार, क्षपणासार एवं लब्धिसार जैसे सैद्धान्तिक ग्रंथों की भाषा टोका करके जैन समाज को अपनी मोर प्राकृष्ट कर लिया। यह प्रथम अवसर था जबकि हिन्दी में किसी विद्वान ने प्राकृत माषा के ऐसे महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय ग्रन्थों पर हिन्दो टोका लिखी हो। इसलिए इन ग्रन्थों के निर्माण के पश्चात् उनकी कौति पताका घारों पोर सहराने लगी। विद्वत्ता के साथ ही उनकी बक्तृत्व शक्ति भी विलक्षण थी एव समाज को रूढ़ियों एवं अन्ध विश्वासों से निकाल कर सम्यक् मार्ग पर लाने को उनकी जबरदस्त भावना थी। इसलिये अपने जीवन में उन्हें अनेक संघों से जूझना पड़ा और इन्हीं संघर्षों से अन्त में जूझते २ पडित जी ने अपना जीवन भी समर्पण कर दिया। वे शहीद हुए थे तथा तत्कालीन समाज की साम्प्रदायिकता की अग्नि में उन्होंने अपने पापको होम दिया । उनका 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' यद्यपि पूर्णतः धार्मिक ग्रंथ है; किन्तु बह आकर्षक शैली एवं विद्रोहात्मक पद्धत्ति में लिखा गया है। जिसका एक-एक वाक्य रहस्यपूर्ण एवं धार्मिक अर्थ को लिये है ।
टोडरमल के पश्चात् होने वाले सभी परवर्ती कवियों ने अपनी रचनात्रों में टॉउरमल का सादर उल्लेख किया है तथा उनकी विष्ठता की प्रशंसा की है। स्वयं महाकवि दौलतराम ने पुरुषार्थ सिद्ध पाय" टोका में टोडरमल जी की विद्वत्ता का निम्न प्रकार उल्लेख किया है
भाषा टीका ता ऊपर कीनी टोडरमल्ल । मुनिबर कृत बाकी रही तांके मांहि प्रचल्ल ।। बे तो परभब गये, जयपुर नगर मझार ।
सम साधर्मी तब कियो मन में यह विचार ॥ बस्तराम साह:
कविधर बख्तराम महाकवि दौलतराम के समय प्रसिद्ध कवि थे । ये इतिहास, सिद्धान्त एवं दर्शन के महान पण्डित थे । भट्टारकों में इनका पूर्ण