Book Title: Madanjuddh Kavya Author(s): Buchraj Mahakavi, Vidyavati Jain Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 8
________________ १४ मदनजुद्ध काव्य रचनाएँ अभी तक कवि बेचराज की छोटी, बड़ी लगभग 20 रचनाएं प्राप्त हो चुकी हैं, जो निम्न प्रकार है (1) मयाणजुद्ध कव्व (2) संतोष जयतिलक ( 3 ) बारहमासा नेमीश्वरका (4) चेतन पद्गलधगल (5) नमिनाथ बसंत (6) टंडाणागीन (7) 'वनकीर्नि गीत, (8) नेमि गीत और विभिन्न रागों में 7 ] गीत, एवं एक पद । 1. पयणजुद्ध कव्य - मयणजद्ध कव्व की कथावस्तु अगले प्रसंग में प्रस्तुत की जा रही है । अनः पुनरुक्ति दोष से बचने के लिए उसका उल्लेख यहाँ नहीं किया जा रहा । 2.संतोष जयतिलक यह एक रूपक काव्य है, जिसमें लोभ पर संतोष की विजय दिखलाई गई है। इसमें 123 पद्य हैं । इस काव्य में सन्तोष नायक और लोभ प्रतिनायक हैं, उन्हीं के माध्यम से कवि ने आत्मिक-विकारी का वास्तविकता का दिग्दर्शन करा कर आत्मिक-गणों के महत्त्व का प्रतिपादन किया है ____ मानव लोभ के वशीभूत होकर नाना प्रकार के बुरे कर्म करता है और संसार में परिभ्रमण करता रहा है । इस विकारी भाव को संतोष के द्वारा जीना जा सकता है । सन्तोष आत्मा का धर्म है । इसी भाव को अपनाने से परिणामों में ऋजता आती है तथा संवर की प्राप्ति होती है और कवि के अनुसार निर्वाण प्राप्ति का यह एक प्रमुख साधन हैं । 3. बारहमासा नेमीस्वर का __ प्रस्तुत रचना में 12 पद्य हैं, जिनमें नेमिनाथ की तपस्या और राजुल की विरहवेदना का मार्मिक चित्रण हुआ है । इसमें श्रावणमास से लेकर आषाढ़ मास तक बारह महिनों का वर्णन किया गया है । विरह दशा का उत्कर्ष दिखलाने के लिए षड्ऋतओं या बारह मासों का वर्णन किया जाता है। इसमें गर्मी, वर्षा और शीत की भीषणता, विरहरूपी अग्नि को अधिकाधिक उद्दीप्त करने में सहायक होती है । कवि ने पूर्व परम्परा को अपने ढंग से कुछ मोड़ देकर उसे सरस बनाने का प्रयत्न किया 4. चेतन पुद्गल धमाल इस रचना में 136 पद्य हैं। उनमें से 131 पद रागदीपगु में और 5 पद्य छप्पय छंद में रचित हैं । इसका वर्ण्य-विषय तान्विक एवं दार्शनिक है । कवि ने प्रस्तुत रचना का समय एवं लेखन-स्थान का उल्लेख नहीं किया है किन्तु भाषा एवं शैली की दृष्टि से उनकी रचनाओं में यह रचना अन्तिम प्रतीत होती है ।Page Navigation
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