Book Title: Madanjuddh Kavya Author(s): Buchraj Mahakavi, Vidyavati Jain Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 7
________________ प्रस्तावना अनुसार भी उनका निवासस्थल राजस्थान ही निश्चित हाना है । “संतोष जयतिलकु" की रचना उन्होंने हिसार ( आधुनिक हरियाणा प्रान्त में स्थित ) में की थी । इससे विदित होता है कि ब्रह्मचारी बनने के बाद स्थान-स्थान पर बिहार करते रहने के क्रम में वे तत्कालीन पंजाब भी गए होंगे और उसी समय उक्त रचना का निर्माण किया होगा । किन्तु उनका कार्य-क्षेत्र मुख्यतः राजस्थान ही रहा होगा । नति गपने या गीन में दुनिनाएर के मन्दिर एवं शान्तिनाथ भगवान के मंदिर का भी वर्णन किया है तथा वहाँ पर होने वाले कथा-पाट का भी उल्लेख किया है । इससे प्रतीत होना है कि उनके विहार राजस्थान, पंजाब और दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में होते रहे होंगे। कवि के नामों में विविधता कवि बूचराज के विविध नाम उपलब्ध होते हैं। उन्होंने अपनी कृतियों में बूजराज, वल्ह, वील्हा, वल्हण और बूचा का उल्लेख किया है । बूचराज, वल्ह, वील्हा, वल्हण और जूचा का उल्लेख किया हैं । मयणजुद्ध में उन्होंने अपना नाम कवि वल्ह' और बूचराज दिया है । "चेतन पुद्गल धमाल'" रचना में उन्होंने वल्हपति', वल्ह', और बूचा नाम दिया । बारहमासा नेमिश्वर "रचना में बूचा नाम और "संतोष जयतिलकु' में वल्हि नाम दिया है । यथा यहु संतोषहू जय तिलहु जंपह वलिह समाई' । इन सभी नामों का अवलोकन करने से यह विदित होता है कि साधारण जनता में कवि बहुत लोकप्रिय था और उसके सभी नामों से लोग सुपरिचित थे । गुरु-परम्परा कवि ने अपनी "भुवनकीर्ति गीत' नामक रचना में भट्टाकर सकलकीर्ति के शिष्ट भट्टारक भुवनकीर्ति को अपना गुरु माना है, जिन्होंने सकलकीर्ति के पश्चात् भट्टारकीय पट्ट को सुशोभित किया था । “सम्यक्त्व कौमुदी" की प्रशस्ति में उन्हें भट्टाकर प्रभाचन्द्र का शिष्य बतलाया गया है। अपने अन्तिम समय में उन्हें भट्टारक रत्नकीर्ति के साथ रहने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ था । 1. पत्रणजद्ध. पद्य 136 2. वही, पद्म 158 3. वनमपनल धपान, पद्य 1 4. वही.. प3 5. वहीं, पy 136 6 आषाढ वाडया भगइ चूचा नेपि अजउ न आईया ।। पद्य 12 1. संतोष जयनिलकु, पद्म 123Page Navigation
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