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"निक्षेपा"
निक्षेपा संबंधी आज हमारी मान्यता इस प्रकार है : चैत्यवंदन भाष्य की गाथा 51 नाम जिणा जिण नामा, ठवण जिणा जिणंदपडिमाओ, दव्व जिणा जिण जीवा भाव जिण समवसरणन्था नाम निक्षेपा :- जिनेश्वर भगवान के नाम को निक्षेपा कहा गया है। स्थापना निक्षेपा :- जिनेश्वर भगवान की प्रतिमा चित्र आदि ।
द्रव्य निक्षेपा :- जिनेश्वर भगवंत के जीव को अथवा आत्मा को द्रव्य निक्षेपा
भाव निक्षेपा :- समवसरण में विराजमान जिनेश्वर भगवंत को भाव निक्षेपा कहा गया है।
उपरोक्त गाथा में सिर्फ जिनेश्वर भगवंत के ही निक्षेप करके बताये गये है और साथ में एक ऐसी मान्यता भी रूढ कर दी गई है कि जिसका भाव निक्षेपा वंदनीय है उसके चारों निपेक्षा वंदनीय है अतः इसी मान्यतानुसार आवश्यक सूत्रों में ऐसी गाथायें जोड़ दी है और प्रकरण आदि सूत्रों में ऐसी ही रचनायें कर दी गई है जिसी का नमूना उपरोक्त गाथा है लेकिन आगम सूत्रों से व तात्त्विक दृष्टि से सर्वथा विपरित है :
___ आगम सूत्रों के अनुयोग द्वार सूत्र में निक्षेपा संबंधी जो व्याख्या की गई है उसका उद्देश्य उसकी व्याख्या ही अलग है अनुयोग द्वार सूत्र में निक्षेपाओं का जो वर्णन है वह आवश्यक क्रिया सूत्र आदि से संबंधित है वहां कहीं भी इस तरह से जिनेश्वर भगवंत की ऐसी कोई व्याख्या नहीं है। __ वहां नाम व स्थापना की व्याख्या उपरोक्त गाथा के अनुसार आवश्यक क्रिया सूत्र से की है और आवश्यक क्रिया करते समय मन स्थिर न हो उपयोग रहित हो उस क्रिया को "द्रव्य क्रिया" अर्थात् द्रव्य निक्षेपा कहा गया है एवं उपयोग सहित की क्रिया को भाव क्रिया अर्थात् "भाव निक्षेपा" कहा गया है।
उक्त आगम सूत्र में ही क्रिया सूत्र के निक्षेपाओं की जो व्याख्या की
क्या यह सत्य है ? (9
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