Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 22
________________ - आदि । उनके गुणगान की बात है न कि उन देवताओं की जो न तप कर सकते है न ब्रह्मचर्य पाल सकते है अगर इन देवताओं से संबंध होता तो इस पद के पीछे तप ब्रह्मचर्य शब्द लगाने का प्रयोजन ही नहीं रहता। आज भी विशिष्ट तपस्या करने वालों का ब्रह्मचर्य पालने वालों का । बहुमान किया जाता है विजय सेठ-विजया सेठाणी को आज भी याद किया जाता है। छः आवश्यक में (1) सामायिक (2) चउवीस स्तवन (3) वंदन (गुरु) (4) प्रतिक्रमण (5) काउस्सग (6) पच्चक्खाण । इन छ: आवश्यकों में दूसरा आवश्यक स्तवन अर्थात् कीर्तन गुणगान जो है वह तीर्थंकरों से संबंधित है अन्य से नहीं तो देवताओं का गुणगान नित्य आवश्यक क्रियाओं में किस आवश्यक के अन्तर्गत आयेगा ? इस समस्या पर विचार करना होगा। कभी किसी व्यक्ति द्वारा विशिष्ट धार्मिक कार्य, तप, ब्रह्मचर्य आदि किये जाते है तो उनकी प्रशंसा भी प्रसंगोपात ही की जाती है । दैनिक कार्य नहीं । विधि मार्ग नहीं। आज भी प्रतिकमण में छ: आवश्यक की क्रिया पूरी होने पर सऽझायके रूप में इन्हें याद किया जाता है इनके तप त्याग को याद कर वैराग्य भावना उत्पन्न हो यहीं एक हेतू होता है। श्रूत का श्रूत देवता अर्थ भी जिन वाणी से ही संबंधित है यदि इसका अर्थ यह करें कि श्रुत का अधिष्ठाता कोई देवी-देवता होता है तो यह असंभव है जिनवाणी के अधिकारी आचार्य उपाध्याय होते है न कि असंयमी देवी देवता । इनको याने आचार्य उपाध्याय को श्रुत का अधिष्ठाता कहा जाय तो अनुचित नहीं हो सकता । इन दोनों पदाधिकारियों का कर्तव्य भी है पंच परमेष्टि में स्थान भी है इनकी दिनचर्या का विशेष भाग भी यही है कि साधू साध्वीओं को व श्रावक श्राविकाओं को अध्यापन कराना एवं संशयों का समाधान करना है। कोई भी देवी देवता अध्यापन कराने आते नहीं । कभी कोई जटिल प्रश्न उपस्थित हो और निकट में समाधान कर्ता न हो तो दूर जाकर क्या यह सत्य है ? (21 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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