Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 37
________________ 6) यह सर्वविदित है कि रात को आंखों में अंजन करना श्रृंगार करना, आभूषण पहनना आदि क्रियायें नव परिणित कामिनिये ही प्रायः करती है। तीर्थंकर भगवान वीतराग है कंचन कामिनी के त्यागी है उनका अनुयायी साधु वर्ग भी कंचन कामिनी के त्यागी है यह सामान्य समझने की बात है कि जैन दर्शन के आचारों से कितना विपरित है। साधुओं के लिये द्रव्य पूजा का विधान ही नहीं और कोई साधु द्रव्य पूजा करता ही नहीं फिर भी यहां सब भूला दिया जाता है। दिगम्बर परम्परा में इस प्रकार की क्रियाएं करने के लिये विद्वान पंडित होते है। साधुओं द्वारा अंजन शलाका करने का निषेध है। .. 7) तत् संबंधी विभिन्न समय समय पर प्रश्न उपस्थित भी हुए है किन्तु रुढी परंपरा के कारण किसी ने छोड़ने का प्रयास ही नहीं किया । सेन प्रश्नावली :(अ) साधुनाम भाव पूजा कयिताऽस्ति प्रतिष्ठायां अंजन शलाका कारणे तु द्रव्य पूजा जायते तत्कथ मिति ? (ब) प्रतिष्ठायां प्रतिमाया नेत्रोनमील के अंजने मधु क्षिप्य से नवा इति ? (स) प्रतिष्ठा अधिकारे साधूनाम वासक्षेपा क्षराणि क्वसंति? यदि च संति तदा प्रतिष्ठावत प्रतिदिनं ते वासक्षेप पूजां कथं न कुर्वन्तिती (द) लब्धि प्रश्न के पेज नं. 193 भी ऐसा ही उल्लेख है। 8) प्रतिष्ठा विधि का एक ग्रंथ आचार दिनकर भी है जिसके अनुसार अमुक क्रिया करने बाद एक ऐसी क्रिया की जाती है कि प्रतिष्ठाचार्य मुनिराज क्रूरदृष्टि से भगवान की प्रतिमा को अंगुली दिखाये और रौद्र दृष्टि से प्रतिमा पर पानी छांटे । क्या यह आगम विरुद्ध बात नहीं है ? जिस प्रतिमा को भगवान मानते है पूजनीय मानते है उनको अंगुली दिखाना, पानी छांटना कितना अविवेकपूर्ण है, अविनयत है, हास्यापूर्ण है। और तीर्थंकर भगवान वीतराग है सर्वोपरि है शांत है, प्रशांत है, उनके सामने क्रुर दृष्टि करना, रोद्र भाव करना, वह कैसी क्रिया है जिनको पूज्य बुद्धि से, शांत चित्त से, विनम्रता से, वंदन, कीर्तन करना चाहिये जिसके 36) क्या यह सत्य है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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