________________
"स्त्री मोक्ष"
जैन श्वेतांबर मान्यतानुसार स्त्री लिंग से भी मुक्ति हो सकती है जबकि दिगम्बर मान्यतानुसार स्त्री लिंग से मुक्ति नहीं हो सकती, इसका खास कारण बताते है कि स्त्री सातवी नरक में नहीं जा सकती और इसका कारण स्त्री की इतनी कमजोरी है इसी कमजोरी अर्थात शक्ति की कमी के कारण स्त्री मोक्ष में नहीं जा सकती श्वेतांबर व दिगम्बर दोनों की मान्यता स्त्री सातवी नर्क में नहीं जाने की ही है। परंतु मोक्ष में जाने की लिये (स्त्री- वेद बाधक हो सकता है स्त्री लिंग नहीं, कारण यह है कि :पुरुष हो या स्त्री मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय करने पर ही केवल ज्ञान हो सकता है और केवल ज्ञान होने के बाद ही मोक्ष मिल सकता है।
तत्त्वार्थसूत्र नवम अध्याय में :- एकादश जिने ।। बादर संपराय सर्वे बादर गुणस्थान याने नवम गुणास्थान तक सभी परिसह है यानि वेद परिसह भी है वह क्रमशः बाद में कम होते शांत हो जाते है और नष्ट हो जाते है। दसम गुणस्थान पार कर अगीयार में गुणस्थान में आत्मा जब आ जाती है तब ग्यारवा गुणस्थान उपशांत मोह का है वहां पर सभी उपशम हो जाते है याने शांत हो जाते है ऐसा होने से कोई भी परिसह सता नहीं सकता, बाधा कारक नहीं हो सकता । एवं नवमगुणस्थान तक आने वाली आत्मा का लक्ष्य एक मात्र मोक्ष का ही होता है। प्रौद्रलिक सुख का लक्ष्य लेश मात्र नहीं रहता।
अतः यहां पर कोई भी वेद बाधा कारक नहीं होता।
जबकि ठीक इसके विपरित नरक में जाने के लिये जो पुरुषार्थ परिश्रम चाहिये वही सभी कषाय जन्य होने से व पौद्रलिक इच्छा पूर्ती के लिये होने से वेद का उदय होने के कारण उसकी पूर्ती के लिये जो परिश्रम करना होता है, स्त्री के लिये पुरुष से लघुता प्रस्तुत करने पर ही पूर्ती हो सकती है। इसी लघुता के कारण मान कषाय की कमी रह जाती है
अतः कषाय की कमी के कारण आखरी नरक स्थान जो कि सातवी नरक है नहीं जा सकती । यह हक ठोस तार्किक दृष्टांत है इसमें न तो श्वतांबर शास्त्र के प्रमाण की जरूरत है न दिगंबर शास्त्र प्रमाण की । विशेष केवली गमय ।
क्या यह सत्य है ? (51
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org