Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 65
________________ भी मोक्ष के स्थान जाते अवश्य है किन्तु टिक नहीं सकते, इन सबका कारण पुण्य का अभाव, कमी । हम जिस पुण्य के क्षय से मोक्ष की बात करते है वह यह है कि : पौदगलिक सुख की इच्छा से की गई धार्मिक क्रिया और इस द्वारा उत्पन्न पुण्य जिसे भोगना पड़ता है और इसी कारण से तीर्थंकर जैसी महान आत्माओं को तीर्थंकर के भव में जानते हुए भी संसारिक सुख का उपभोग करना पड़ता है जिसे प्रचलित भाषा में भोगावली कर्म कहते है। _पुण्य सोने की बेड़ी है यह बात भी वहीं लागू होती है कि जो आत्मा आत्मिक लक्ष होते हुए क्रिया करते करते जब आयु क्षय हो जाती है और मोक्ष में जाने जितना पुण्य नहीं होने से देवलोक में जाना पड़ता है उसे वहां देवलोक में दुःख महसूस होता है कि अगर मैं कुछ और आधिक पुरूषार्थ करता तो मोक्ष में चले जाता अब फिर समय लगेगा मनुष्य भव में जाना पड़ेगा उसे देवलोक का सुख भी दुःख रूप में लगता है जिसे सोने की बेड़ी कहा जाता है । दस बजे गाड़ी से जाने वाला व्यक्ति स्टेशन पर पांच मिनट विलम्ब से आवे और गाड़ी निकल जाय तब दूसरी गाड़ी में जाने के लिए 4-6 घंटे स्टशन पर बैठना कष्टकारक होता है ठीक इसी तरह मोक्षार्थी आत्मा को देवलोक में दुःख रूप होता है ? एक व्यक्ति अपने घर से चलकर उपाश्रय में गुरू महाराज के पास जाता है उपाश्रय में जाकर गुरू महाराज के पास बैठ जाता है तब उसके पैर जिससे वह चलकर आया है अपने साथ ही है उपाश्रय के बाहर नहीं है उपाश्रय में बैठ जाने के बाद पैर निष्क्रिय हो जाते है क्योंकि वहां उपयोग की जरूरत नहीं है ठीक इसी तरह आत्मा पुण्य के साथ ही मोक्ष में जाती है वहां जरूरत नहीं होने से उपयोग नहीं होता अतः अक्षय रहता है। अतः इन सभी तथ्यों पर विचार करें यही एक हार्दिक अभिलाषा । - हजारीमल 64) क्या यह सत्य है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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