Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 68
________________ नमो लोए सव्व साहुणं (स्पष्टी करण) पंच परमेष्टि सूत्र अर्थात नवकार के पांच पद है जिसमें प्रथम पद नमो अरहंताणं, द्वितीय - नमो सिद्धाणं, तृतिय, नमो आयरियांण, चतुर्थ - नमो उवज्झायांण एवं पंचम पद में - नमो लोए सव्वसाहुणं इस तरह से है। उपरोक्त चार पदों में लोए सव्व ये शब्द नहीं है जबकि पंचम पद में ये दो शब्द अधिक है जिसका स्पष्टीकरण विभिन्न प्रकार से किया जाता है। चारों पदों में भी ये शब्द जोड़ देना चाहिए तो कोई कहता है कि साधुओं में गच्छ आदि भेद है इसलिए सव्व शब्द है लोए शब्द का तो कोई स्पष्टीकरण करता ही नहीं अतः कहीं कहीं लोए शब्द को निकाल भी दिया गया है। इसका वास्तविक स्पष्टीकरण यह होता है कि जो कि निम्न है : 1. प्रथम पद "अरहंत भगवंत से है 'अरहंत' कोई भी हो विभिन्न क्षेत्रों में भी हो फिर भी सभी के गुण द्रव्य एवं भाव से समान होते है कोई अंतर नहीं होता । द्रव्य से अष्ट महा प्रतिहार्य और भाव केवल ज्ञान केवल दर्शन आदि । ये सभी के होते ही है और समान ही होते है कोई भेद नहीं होता अतः सव्व शब्द की आवश्यकता ही नहीं रहती। 2. द्वितीय पद 'सिद्ध' भगवंत से है इनके भाव गुण ही है और सभी के है और समान है कोई भेद नहीं अतः यहां भी सर्व शब्द की आवश्यकता नहीं रहती। 3. त्रतिय पद "आचार्य" भगवंत से है यह पद एक अधिकारी की तरह * है जिनका कर्तव्य सभी को समान होता है निभाना पड़ता है। अपने खुद का संयमी जीवन जीते हुए, अन्य संयमी आत्माओं का जो जिनकी निश्रा में है, उनके संयम निर्वाह में आने वाले अतिचारों का उत्पन्न समस्याओं आदि का निराकरण करना होता है। ये सभी कार्य छद्मस्थ अवस्था में होने के कारण एवं समान अधिकार होने के कारण यहां भी सर्व शब्द की आवश्यकता नहीं रहती (केवली भगवंत किसी को उपालंभ देते नहीं) क्या यह सत्य है ? (67 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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