Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 66
________________ नमस्कार सूत्र अथवा नवकार जब हम बोलते है तो कभी-कभी आधुनिक प्रथानुसार ॐ नमो अरहंयाणं ॐ नमो सिद्धाणं ........ इस तरह ॐ को साथ में जोड़कर बोलते है तो प्रश्न यह होता है कि जैसे : 1. ॐ नमो अरहंताणं व ॐ नमो सिद्धांणं का जब हम उच्चारण करते है तो उन वाक्यों का अर्थ क्या होगा ? याने ॐ को साथ जोड़ने पर क्या अर्थ होगा? क्या यह भाषा की दृष्टि से सही है ? 2. जहां तक आगम सूत्रों में इसका उल्लेख है वह नमो अरहताणं नमो सिद्धाणं...... इस तरह से है तो क्या हम आगम सूत्रों की उपेक्षा से आशातना के भागीदार नहीं बनेंगे ? 3. ॐ को नवकार के साथ जोड़ने से क्या वृद्धि होती है अथवा नहीं जोड़ने से क्या कमी रह जाती है ? '4. ॐ यह संस्कृत भाषा का शब्द है उसका वैदिक साहित्य में विशेष उपयोग हुआ है जबकि नवकार प्राकृत भाषा की रचना है और प्राकृत भाषा में ॐ का उल्लेख "ओम' इस तरह से होगा जिसका अर्थ निस्सार होता है तो क्या यह विसंगति नहीं होगी? 5. ॐ का अर्थ हम आधुनिकता में पंच परमेष्टि नाम से करते है अर्थात पंच परमेष्टि का यह संक्षिप्त संयुक्त शब्द है ऐसा कहा जाता है। ( अरहंत, अशरीरि, आचार्य, उपाध्याय मुनि) इस तरह का समाधान किया जाता है तो क्या यह उचित हो सकता है ? उदाहरणार्थ :- "प्रसिद्ध आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर" ने नवकार का संक्षिप्त करण किया था : कि नमो अहंत सिद्धा - चार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः इसके लिए उनके गुरू ने अनुचित ठहराकर अति कठिन “पारांचित” प्रायाश्चित दिया था जिसे "सिद्धसेनजी" ने स्वीकार किया था । तो क्या हम इससे भी अधिक संक्षिप्त करने से संक्षिप्त उच्चारण करने से अधिक प्रायश्चित के भागीदार नहीं बनेंगे? क्या यह सत्य है ? (65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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