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द्रव्य कुछ कम है तो विमान वासी देव होता है। अतः वही द्रव्य है जो कि पुण्य है।
कोई भी आत्मा नरक में स्वयं नहीं जाती जाना नहीं चाहती परंतु उसका पाप ही उसे ले जाता है ठीक इसी तरह देव लोक में या मोक्ष में भी जाने की इच्छा होने पर नहीं जा सकते जब तक देव लोक के लिए योग्य व मोक्ष योग्य यथा योग्य पुण्य प्राप्त नहीं करें।
एक विशुद्ध सामायिक का फल 12,59,25,235 पल्योपम देवलोक का आंका गया है तो यह भी पुण्य ही है और बिना सामायिक (चरित्र) के मोक्ष नहीं।
भगवती सूत्र शतक 23.5 में संवर निर्जरा का जो उल्लेख है वह पाप से संबंधित है पुण्य से नहीं जैसे कि इस प्रश्नोत्तरों के आगे देवलोक में उत्पन्न होने संबंधी प्रश्नोत्तर है जिसमें ये ही कारण बताये गये है।
यहां यह प्रश्न हो सकता है कि सराग संयम से देवलोक और वीतराग संयम से मोक्ष मिलता है तो प्रश्न यह होता है कि जब आत्मा ग्यारवें गुणस्थान (उपश्म) मे आती है तब सराग संयम ही है तो सात लव आयुष्य अधिक होने से मोक्ष में कैसे जा सकती है ? और मोक्ष में चली जाती तो अगीयार में से पहले जिसे संयम ही कहा जाता है तो ? उसका प्रतिफल भोगना बाकी रह गया जिसकी पूर्ती कहां होगी ? प्रज्ञापना सूत्र गाथा नंबर 124 में तो उपशांत कषाय को वीतराग संयम ही कहा गया है फिर भी देव लोक में जाना पड़ता है अगीयर में गुण स्थान के आगे बारहवें व तेरहवां गुण स्थान आता है जहां केवल ज्ञान हो जाता है तो क्या अब तक किया हुआ पुण्य कहां खतम किया जाता है क्या बारहवें गुणस्थान में पुण्य खतम करने की कोई क्रिया की जाती है या केवल ज्ञान होने के बाद ऐसी कोई क्रिया की जाती है जिससे पुण्य खतम हो जाय ? यह भी निर्विवाद है कि अगीयार बारहवें व तेरहवें गुण = 5 स्थान में भी चारित्र है ही और चारित्र पुण्य का कारण है बिना चारित्र के मोक्ष में जा नहीं सकते, जाय तो टिक नहीं सकते। __ सूक्ष्म नगोद के जीव भी मोक्ष के स्थान में जाते है किन्तु क्षण भर भी टिक नहीं सकते । त्रस नाड़ी के अंदर जीव जब विग्रह गति करते है तो वे
क्या यह सत्य है ? (63
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