Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 63
________________ पुण्य से मोक्ष ? प्रचलित जैन मान्यतानुसार पाप और पुण्य दोनों के क्षय से ही मोक्ष मिलता है पाप का क्षय तो समझ में आ सकता है किन्तु मोक्ष के लिए पुण्य का भी क्षय करना पड़े यह असंभव मालूम होता है । 1. भगवती सूत्र शतक 14 उद्देश्य 7 में वर्णन है कि आत्मा उपशम श्रेणी तक जाकर वहां पर आयु क्षय हो जाय तो सर्वार्थ सिद्ध विमान में उत्पन्न होना पड़ता है अगर उन महान आत्मा के इससे पहले जो कुछ किया है उससे अधिक छट्ठ तप और हो जाता, अथवा यहां सात लव (पांच मिनिट लगभग) आयुष्य और ज्यादा होता तो मोक्ष में चले जाते, किन्तु दोनों को कमी के कारण यह नहीं हो सका । यहां हमें यही सोचना है कि जब आत्मा जिस संयम व तप के बल से उपशम श्रेणी तक पहुंची है और वहां संयम व तप की कुछ कमी के कारण मोक्ष में नहीं जा सकी और सर्वार्थ सिद्ध विमान के देवलोक में जाना पड़ा यह एक सर्वोत्कृष्ट देवलोक का देवविमान है जो सिद्धशिला से कुछ नीचे है और तिर्छा लोक से बहुत ऊपर है जाने के लिए पुण्य की आवश्यकता है बिना पुण्य के देवलोक जा नहीं सकते तो सर्वार्थ सिद्ध विमान से भी ऊपर जाने के लिए और अधिक पुण्य का आवश्यक होना स्वाभाविक है यहां पुण्यक्षय का प्रश्न ही नहीं होता उल्लेख भी नहीं । 2. दशवैकालिक सूत्र अध्याय नवम् उद्देश्य चार गाथा सात जाइ मरणाओ मुच्चइ इत्थं थंच चोइ सव्वसो सिद्धेवा हवइ सासण देवेवा अप्पर से महिद्वओ । अन्वयार्थ :- उपरोक्त गुणों को इस गाथा के पहले के गाथाओं में गुणों का वर्णन है धारण करने वाला मुनि नरकादिपर्याओं को सर्वथाक्षय कर देता है अर्थात नरकादि गति में जा नहीं सकता किन्तु जन्म मरण के चक्कर से छुट जाता है तथा शाश्वत सिद्ध हो जाता है "वा अप्पर अ" यदि कुछ कमी रह जाती है तो वह आत्मा महा ऋद्धिशाली ऐसा अनुत्तर विमान वासी देव होता है अतः इसका भी तात्पर्य यही निकलता है कि जिस द्रव्य की सहायता से आत्मा शाश्वत सिद्ध गति प्राप्त करता है वही 62 ) क्या यह सत्य है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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