Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 56
________________ माना जाय । अव्यवहार राशी में आत्मा के मन, वचन, काय नहीं जिसके प्रमाण निम्न प्रकार है। 4. पंचम अंग भगवती सूत्र ना ग्यारवा शतक ना दशमा उद्देशा में निगोद नो विचार छे तेज कहे छे पुष्प 4 श्री प्रकरण पुष्प माला, जेमां परमाणु खंड छत्तीसी, पुदगल छत्तीसी, अने निगोद छत्तीसी ऐन्नणो प्रकरणों आवेल छे भाषांतर कर्त्ता : मुनिराज श्री देव विजयजीगणी वीर संवंत 2443 प्रसिद्ध कर्ताः आत्मानंद जैन सभा, भावनगर पेज नं. 77 बादर निगोदा हि निराधार न संभवति ततः पृथ्वीयादिष्वेन । स्वास्थाने सु स्वरूपो भवन्ति न सूक्ष्म निगोद वत्सर्वत्र ।। इत्यतोयत्र क्र्वाचते बादर निगोदादयो भवन्ति तदुत्कृष्ट पदं तात्विक मिति भावः भाषांतर :- बादर निगोदो निराधार रहे नहीं पृथ्वी आदि ने विषेज रहे छ। सूक्ष्म निगोद नी माफक सर्वत्रनथी माटे ज्यां ते बादर निगोदादि होय त्यांज तात्विक उत्कृष्ट पद जाणवु ।। निष्कर्ष :- उपरोक्त प्रमाणों से यह मालूम होता है कि बादर निगोद निराधार नहीं सर्वत्र भी नहीं । पृथ्वी काय आदि से आधारित है । अतः सूक्ष्म निगोद सर्वत्र है निराधार है पृथ्वी काय आदि से आधारित नहीं। अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि सूक्ष्म निगोद ही अव्यवहार राशी है अन्य नहीं । यहां पर अव्यवहार राशी की अलग व्याख्या ही नहीं है। "सूक्ष्म निगोद" सर्वत्र होने से सर्व व्यापक होने के कारण पृथ्वी आदि में है न कि पृथ्वी आदि का आधार लेकर याने किसी भी शरीर के साथ नहीं 5. प्रसिद्ध इतिहास वेत्ता पं. श्री कल्याण विजयजी द्वारा लिखित "श्रमण भगवान महावीर" की पुस्तक में लिखते है कि भगवान महावीर को गणघर गौतम स्वामी पूछते है कि सूक्ष्म से क्या तात्पर्य है उत्तर में भगवान फरमाते है कि सूक्ष्म अर्थात किसी भी इन्द्रिय द्वारा न जाना जा सके वह सूक्ष्म । पेज नंबर 44. 6. मुनि श्री हेमचन्द विजयजी द्वारा लिखीत पुस्तक प्रश्नावली के पेज नं. अगीयार प्रश्न नंबर दो में सूक्ष्म निगोद व अव्यवहार राशी को एक ही कहा है। क्या यह सत्य है ? (55 , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org...

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