Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 55
________________ अब जिस मिट्टी के परमाणुओं से सोने के पस्मामुओं से सोने के परमाणुओं को अलग किया है यह उनका साथीपना भी अनादि काल से न ही था, क्योंकि परमाणुओं का मिलना याने स्कंध अस्थिर है अ-अनादि है हमारे इस अग्नि प्रयोग के पहले भी सोने का परमाणु अलग भी था फिर मिला अगर आज उसे अलग नहीं भी करते तो वह कभी न कभी भूकंप आदि से अलग हो सकता था कई बार अलग हुआ भी है वमिलाभी है अपनी शक्ति द्वारा अलग किया परमाणु फिर किसी भी अणु के साथ मिल सकता है चाहे वह मिट्टी का हो या अन्य धातू का। अतः सोना मिट्टी के साथ अनादि काल से है यह मान्यता परमाणु सिद्धांत पर टिकती नहीं और परमाणुओं के बिना कोई स्कंध बनता नहीं चाहे मिट्टी का हो या सोने का 1. भगवती सूत्र के शतक 14 उद्देशक 4 में परमाणु संबंधी वर्णन है। 2. श्रमण भगवान महावीर नामक पुस्तक के पृष्ट नंबर 192 में प्रन्यासजी श्री कल्याण विजयजी लिखते है कि दो, तीन, चार और अधिक परमाणु . मिल कर जो स्कंध बनता है वह स्कंध अस्थिर है इसमें हानि वृद्धि होती रहती है ठीक इसी तरह आत्मा भी अपना अस्तित्व अनादि काल से टिकाए हुए है और जब वह कोई भी क्रिया करने योग्य होता है तब ही वह क्रिया कर सकता है और जब क्रिया शुरू होती है तब कर्म आना और मिलना शुरू होता। 3. दूसरा उदाहरण दिया जाता है कि मिथ्यात्व अविरति प्रमाद कषाय योग आदि के कारणों से आत्मा नित्य कर्म बांधता है लेकिन ये सब कारण बंध के है। आश्रव के नहीं पहले कर्मों का आश्रव होता है और बाद में बंध । बंध में ये जरूर सहाभूत है देखिये : तत्वार्थसूत्र की गाथा : अध्याय छ: काय वाङ मनः कर्म योग: स आश्रवः कर्मों के आश्रव के लिये मन, वचन और काया की प्रथम आवश्यकता है । अनादि काल से आत्मा जो कि अव्यवहार राशी में है, मन, वचन से रहित है और काय भी नहीं है या नहीं वत है। जब मन नहीं, वचन, नहीं, और काया भी नहीं तो कर्मों का आना याने आश्रव हो भी नहीं सकता जैसा कि ऊपर तत्वार्थ सूत्र में दर्शाया गया है। अतः अनादि काल से आत्मा को कर्म लगे हुए है यह कैसे 54) क्या यह सत्य है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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