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द्वारा छिनने पर या हानि पहुंचाने पर या प्राप्त नहीं होने पर द्वेष उत्पन्न होता है तभी कर्मों का आना प्रारंभ होता है । सूक्ष्म निगोद अर्थात अव्यवहार राशी के जीवों के पास कोई भी वस्तु ही नहीं है कोई भी वस्तु को देखने या जानने की साधना शक्ति भी नहीं है ताकि राग उत्पन्न हो या उसको हानि पहुंचाने वाले पर द्वेष उत्पन्न हो अत राग द्वेष नहीं होने कारण से कर्मों का आना भी नहीं हो सकता । अतः उपरोक्त प्रमाण से यह प्रमाणित होता है कि सूक्ष्म निगोद अर्थात अव्यवहार राशी में जहां जीव अनादि काल से पड़ा हुआ था वहां कर्म रहित था । वहीं आत्मा जब व्यवहार राशी में आता है तब उसके पास शरीर हो जाता है और शरीर द्वारा वह कुछ कर सकता है और अनिच्छा से भी अपना शरीर अन्य प्राणियों द्वारा उपयोग में लाया जाता है और यहीं से व्यवहार चालू होता है अतः व्यवहार राशी कहलाता है यहीं से कर्मों का आना प्रारंभ हो सकता है क्योंकि कर्म करने के लिए ये अब उसके पास है कुछ है | अतः अनादि काल से आत्मा कर्म रहित था और जब व्यवहार राशी में आया तब कर्मो का आना शुरू हुआ । अतः कर्म आदि है अनादि नहीं।
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क्या यह सत्य है ?
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