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आश्चर्य कारी घटनायाने अच्छेरा कहने की आवश्यकता ही क्या ? सामान्य बात हैकिन्तु ऐसी नहीं होने वाली घटना जब बनती है तब आश्चर्य कारी कही जाती है।
9. यह भी कहा जाता है कि केवली भगवंत बिना इच्छा के आहार करते है तो प्रश्न यह होता है कि केवली भगवंत अकेले भी होते है समुदाय में भी होते अकेले होने पर भूख लगने पर गौचरी जावे, आहार लावे, आहार अपने हाथ से करें यह सभी बिना इच्छा के संभव है क्या ? और आहार करें तो लघु शंका आदि निहार भी करना पड़े और निहार करे तो सफाई की भी आवश्यकता पड़ सकती है यह सभी झंझट केवल ज्ञानीयों के लिये संभव हो सकती है क्या ?
- छद्मस्थ अवस्था में भूख लगती है तब भूख पूरी करने की इच्छा होती है उस इच्छा को रोकने के लिये जो प्रयत्न करना पड़ता है वही तप है इच्छा को रोकना अर्थात तप करना यही इच्छा का क्षय करना है जहां इच्छा है वही तप भी है तप की आवश्यकता भी है। केवल ज्ञान होने के बाद इच्छा नहीं तो इच्छा का रोधन भी नहीं अर्थात तप भी नहीं ।
10. जहां तक मेरा अध्ययन है केवलज्ञान होने के बाद असाता वेदनीय कर्म बाकी नहीं रहता मात्र सातावेदनीय ही बाकी रहता है। उदाहणार्थ : कथानुयोग में जहां भी केवलीयों का केवलज्ञान होने का वर्णन है वहां पर असाता अवस्था में केवलज्ञान होने पर अंतर्मुहर्त के अंदर या तो केवली निर्वाण प्राप्त करते है अन्यथा देवता आकर असाता का निवारण कर देते है अंतर्मुहर्त से अधिक समय तक असाता रही हो ऐसा प्रसंग शायद मिलना कठिन है।
अत: विद्वान वर्ग से निवेदन है कि सभी तथ्यों पर गहराई से सोचे विचार करें और जो भी उचित अनुचित लगे पत्र द्वारा मालूम करें यही एक हार्दिक विनंति है।
- हजारीमल जैन
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50) क्या यह सत्य है ? ..
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