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दुःख अनुभव करते हुए छोड़ने का इच्छा करता है एवं जिसने षटकाय जीवों की विराधना छोड़ दी है उन का गुण गान, अनुमोदन करता है "पुण्यानुबंधी पाप' का बंध होता है।
उदय :- पाप कर्म के कारण उदयावस्था में आने वाले दुःख में हाय तोबा नहीं करते हुए धर्म आराधना करना पुण्यानुबंधी पाप का उदय है
उदीरणा :- प्राप्त हुए पौद्गलिक सुख सामग्री का त्याग कर संयम जीवन जीना पुण्यानुबंधी पाप की उदीरणा है।
सत्ता :- जब तक उदय में न आवे तब तक सत्ता में रहता है।
(4) "पापानबंधी पाप" बंध :- ज्ञानी अने तारक भगवंत की आज्ञा विरूद्ध प्रवृत्ति करना अनुमोदन करना ‘पापानु बंधी पाप' का बंध होता है
उदय :- पाप कर्म के कारण किसी भी प्रकार के दुःख आने पर हाय तोबा करना आक्रंद करना, पापनुबंधी पाप का उदय है
उदीरणा :- आये हुए दुःख की प्रतिकार करने, मिटाने के लिये और पाप प्रवृत्ति करना पापानुबंधी पाप की उदीरणा है।
सत्ता :- जब तक उदय में नहीं आवे सत्ता में रहता है।
46) क्या यह सत्य है ?
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