Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 20
________________ तीन थुई- चार थुई आज जैन समाज में दो भेद ऐसे भी है जो लगभग सभी क्रिया विशेषों में समान होते हुए भी मात्र स्तुति का ही मतभेद है जो कि तीन थुई चार थुई के नाम से प्रसिद्ध है। यह मतभेद भी कभी कभी तनाव पैदा कर देता है यदि इसको. गहराई से देखा जाय तो वास्तविकता कुछ और ही है यहां पर यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि तीन थुई चार थुई से जो संबंध है वह काउस्सग के साथ से संबंध है व देवी देवताओं की थुई (स्तुति) से संबंध है। चैत्य वंदन या देव वंदन करने की विधि मे अरहंत चेइयाणं करेमि काउस्सगं कह कर काउस्सग किया जाता है और काउस्सग पूरा होने पर स्तुति याने थुई बोली जाती है। अरहंत चेइयाणं करेमि काउस्संग :- वंदण वत्तिआओ पुअण वत्तिआओ, सक्कार वत्तिआओ, सम्माण वत्तिआओ, आदि के लिये काउस्सग करता हूं याने काया को वोसिराता हूं। यहां पर यह सोचना है कि क्या हम काया को वोसिराकर वंदन, पूजा सत्कार सम्मान आदि कर सकते है ? इन कार्यों के लिये तो काया को सक्रिय बनाना ही पड़ता है। वंदन के लिये पांचों अंगों को सक्रिय बनाने से ही भूमि स्पर्श होकर या चरण स्पर्श होकर पूर्ण वंदन या पंचाग नमस्कार हो सकता है मुंह से बोलना भी पड़ता है पूजा में भी सारा शरीर सक्रिय किये बिना पूजा नहीं हो सकती । __ जबकि हमारे यहां पर उल्टी गंगा जैसा वर्णन है । अगर हमें अरहंत प्रभू की पूजा, भक्ति, वंदन आदि करना है तो काउस्सग से ये कार्य होते नहीं, अतः काउस्सग की जरुरत ही नहीं क्योंकि काया की प्रवृति से ही ये हो सकते है। निष्क्रिय बनकर उनके सामने रहना उनका सत्कार, सम्मान नहीं, अपमान है उपेक्षा है अत: तत् संबंधी काउस्सग ही नहीं तो तत् संबंधी स्तुति का प्रश्न ही नहीं उठता तो तीन चार का प्रश्न ही क्या ? क्या यह सत्य है ? (19 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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