Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 32
________________ ॐ पुत्र, मित्र, भाई, स्त्री, स्वजन आदि बंधुओं के लिये समस्त प्रकार से आमोद प्रमोद होने की कामना की गई है। सामायिक धारियों के लिये विशेषकर उन मुनि महाराजों के लिये जिसने संसार छोड़कर पंच महाव्रत धारण कर लिये है उनके लिये ऐसा करना क्या उचित हो सकता है ? क्या नवकोटी पच्चक्खाण का भंग नहीं होता ? यह चारित्राचार का कितना मखौल है । उपेक्षा है । इतने पर भी तृप्ती नहीं होने से कई तरह के (भौतिक सुख प्राप्त हेतु ) पूजा अनुष्ठानों का निर्माण किया गया है किया जा रहा है । पद्मावती पूजन, ऋषिमंडल आदि इसी की देन है । इन अनागमिक, भौतिक अनुष्ठानों को देखकर वर्तमान सदी के प्रसिद्ध विद्वानों में से प्रसिद्ध इतिहास वेत्ता प्रन्यासजी श्री कल्याण विजय जी अपनी पुस्तक "निबंध निचय" में लिखते है कि ऐसे निस्सार अनुष्ठानों को हमारा जैन धर्म जो कि लोकोत्तर है लौकिक होता जा रहा है । एक बंगाली अजैन विद्वान लेखक जिसने अंग्रेजी में जैनों का इतिहास लिखा है जिनका नाम "असीम कुमार राय" है लिखते है कि जैनों में न तो कोई मंत्र है न पुरोहित याने मंत्र विधि विधान कराने वाले पंडित | देखिये. : हिन्दी अनुवाद पेज नं. 4 व 95 ) I आगे यह भी लिखते है कि देवताओं की एक श्रेणी जो काफी लोकप्रिय हुई वह थी "विद्या देवी" सर्वप्रथम केवल एक ही विद्या देवी थी बाद में नई नई देवियां जुड़ गई और अब सोलह विद्या देवियां है । दशवैकालिक सूत्र की उस गाथा को हृदयगंम कर ले तो न किसी मंत्र की आवश्यकता है न देवी देवताओं के अनुरोध की। न इनकी साधना की । धम्मो मंगल मुक्किद्वं, अहिंसा संजमो तवो । देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मो सयामणो ॥ Jain Education International क्या यह सत्य है ? (31 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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