________________
(4) निजय पहुत :सतरी पणतीसा विय, सट्टी पंचेव जिण गणो ऐसो । वाहि जल जलण हरि करि, चोरारि महाभय हरं ।।।
सितेर, पेंतीस पेसठ कुल एक सौ सित्तर (170) जिनेश्वरों से व्याधि, जल, अग्नि, सिंह, हाथी चोर आदि महाभयों के हरने को कहा गया है। (5) नमिउण स्तोत्र
सडिय कर चरण नह मुह, निबुद्ध नासा विवन्न लायन्ना; कुटु महा रोगा जल, फुलिंग निदृढ़ सव्वंगा ।। ते तुह चलणा राहण, सलिलंजलि सेय बुढियच्छाया; वणदव दड्ढा गिरिपायन पता पुणोलच्छिं ।।
अर्थ :- जिसके हाथ, पैर, नख, मुंह आदि सड़ गये है, नाक बैठ गया है रुप नष्ट हो गया हो ऐसे महारोग कुष्ट से सर्वांग दग्ध जैसा हो गया हो ऐसा हे भगवान (पार्श्वनाथ) तुम्हारे चरण कमल की सेवा से निरोग होकर
कांतिवान हो जाते है। १४गाथा नं. 4, 5 में जल भय, 6, 7 में अग्नि भय, 8, 9 में विष भय, 10, 11 में अश्वी भय, 12, 13 में सिंह भय, 14, 15 में गज भय, 16, 7 में रण भय आदि भयों के निवारण के महात्मय बताये गये है। (6) अजित शांति स्तवन :
इसमें ऊंकार आदि मंत्र का उच्चार तो नहीं है किन्तु कुछ गाथाये आपत्तिजनक है । उदाहरण :- गाथा नं. 26, 27 : अंब रंतर विआरणि अहिं ललिअ हंसवहु गामिणि आहिं पीण सोणिथण सालिणि आहि सकल कमल दल लोअणि आहिं।। पीण निरंतर थण भर विणं मिअ गायल आहिं मणि कंचन पसि दिल मेहल सोहि अ सोणि तडाहिं वर खिखिणि नेउर सतिलय वलय विभूसणि आहिं रइकर चउर मणोहर सुंदर दंसाणि आहिं ।। आकाश में विचरने वाली हंस की तरह गतिवाली, जिसके नितम्ब व
क्या यह सत्य है? (29
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org