Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 26
________________ "सिद्ध चक्र" आजकल सिद्ध चक्र की आराधना तत् संबंधी ओली तप शाश्वत है ऐसी मान्यता प्रचलित है जिसका मूल आधार "श्रीपाल चरित्र" है इस चरित्र के आधार व उपदेश से सिद्ध चक्र की आराधना का विशेष महत्व दिया जाता है लेकिन साहित्य क्रिया व इतिहास की गहराई में जाने से कई बात सिद्धांत से विरुद्ध जाती है वे निम्न है। 1) अगर ओली तप एवं सिद्धचक्र शाश्वत होता तो श्रीपाल चरित्र में आचार्य श्री मुनिचन्द्र सूरीश्वरजी का मयण सुंदरी को यह कहना कि मैं तुम्हें एक निर्दोष यंत्र उदृत करके बताता हूं जिसकी आराधना करने से इहलोक परलोक संबंधी इच्छायें पूरी होती है यह कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती, सामान्यता यहीं कहा जा सकता था, कि आने वाले चैत्र या आशोज माह जो भी पहले आता हो उसमें ओली तप कर देना व सिद्धचक्र की आराधना कर देना चाहिये । 2) राजा संप्रति द्वारा लाखों प्रतिमायें भराने का उदाहरण मिलता है किन्तु सिद्धचक्र यंत्र भराने का उल्लेख कहीं भी नहीं आता । ___3) श्रीपाल कथा में तप द्वारा पौद्धगलिक उपलब्धियों का ही विशेष वर्णन है आत्मिक उपलब्धियों का कुछ भी नहीं जैसे पौषध, पडिमावहन, अनशन, अवधिज्ञान आदि । 4) उपासक दशांग सूत्र में भगवान महावीर के शासन में उत्कृष्ट श्रावकों का वर्णन है जिसमें पौषध व्रत, पडिमावहन, अनशन आदि का ही वर्णन है वहां कहीं भी किसी श्रावक द्वारा ओली तप या सिद्धचक्र की आराधना संबंधी कोई उल्लेख नहीं है। 5) अरहंत भगवंत समवसरण में सिंहासन पर बिराजते है तब उनकी पर्षदा में आचार्य, उपाध्याय, साधु, भगवंत उनके आसान से नीचे श्रोतागण की मुद्रा में ही बैठते है, उपदेशक के रूप में नहीं । समश्रेणी आसन पर भी नहीं । जबकि सिद्धचक्र में समश्रेणी आसन पर दिखाया जाता है। 6) आज भी अरहंत भगवंत की प्रतिमा के सामने गुरु वंदन नहीं किया जाता वैसे तो मंदिर में गुरु वंदन करने का प्रसंग नहीं आता परन्तु लासागरपरि आनन क्या यह सत्य है ? (25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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