Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 24
________________ मंत्र ज्योतिष आज जैन दर्शन के प्रायः सभी समुदाय व सभी वर्ग मंत्र एवं ज्योतिष का निमित्त आधार आश्रय लेते है क्या जैन दर्शन के शुद्ध आराधक को यह उचित है ? कृपया निम्न पंक्तियों पर ध्यान दें : 1) उत्तराध्ययन सूत्र :- भाषांतर कर्ता पन्यासजी श्री भद्रकंर विजयजी अध्याय 8 गाथा 13 जे लक्खणंच सुविणंच अंगविज्जंच जेपउजंति नहु ते समण वुच्चंति एवं आयरिय अक्खायं ।। (सामुद्रिक स्वप्न शास्त्र अंग स्फुरण रूप अथवा ॐ ह्रीं विगेरे अंग विद्या गमे ते अंक के समस्त नो प्रयोग करे ते साधुओं कहवाय नहीं एम आचार्यों ऐ कहेल छे ।) 2) उत्तराध्ययन सूत्र : अ 15 गाथा 8 :- मंत्र मूलं विविहं विज्जचितं विरेअण धूमनित सिणाणं । आउरे सरणं तिगिच्छ तंच परिणणयं, परिवओस भिक्खु ।। (ॐकार थी मांडीने स्वाहा पर्यंत मंत्र, सहदेवी, मुलिका विगेरे सर्वज्ञ परिज्ञा थी जाणी अने प्रत्याख्याव परिज्ञा थी छोडी संयम मार्ग मां विचरे तेज साधु छे) 3) नवी मुंडी अण समणो, न ॐ कारेण बंभणो, न मुणी वण वासेणं कुस चिरेण न तवसो । 25 गाथा 30 4) मंता जोगं काउं भुइकम्मं च जे पउजंति । सायर खइढि हे उं अभिओग भावण कुणइ ।। 36-262 5) अणु बुद्ध रोस पसरो तहय निमित्तमि होइ पडिसेवि । एएहिंकारणाोहिं आसुरिअं भावणं कुणई (मंत्रो, योगो भूति कर्म विगेरे अमिओगी भावनाओं छे, निमित्त आदि आसुरि भावाओं छे आथी अनंत संसार सागर मां भमवानु छ ।) ___6) दशवैकालिक सूत्र : अध्याय 8 गाथा 51 : णक्खतं, सुमिषं, जोगं, मंतं निमित्तं, भसेजं गिहिणे तंण आइक्खे भुयाहि गरणं पयं || नक्षत्र, स्वप्न, योग, मंत्र, निमित्त, भेषज्य ग्रहस्थों को न बताये। 7) समवायांग सूत्र : 29 : एगुणतीसइ विहं पावसुय पसंगेणं पण्णति तं जहा : क्या यह सत्य है ? (23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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