Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 12
________________ सन्नन्दिसंघसुरवर्त्मदिवाकरोऽभूच्छोकुन्दकुन्द इतिनाम मुनीश्वरोऽसौ । जीयात् स वै विहितशास्त्रसुधारसेन, मिथ्याभुजंगगरलं जगत प्रणष्टम् ॥ -धर्मसग्रह श्रावकाचार (मेधावी) वन्द्यो विभुवि न कैरिह कोण्डकुन्द , कुन्दप्रभाप्रणयिकीत्तिविभूषिताश । यश्चारुचारणकराम्बुजचञ्चरीकश्चक्रे श्रुतस्य भरते प्रयत प्रतिष्ठाम् ।। -श्रवणबेलगोल शिलालेख स० 54/67

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