Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 38
________________ 44 / आचार्य कुन्दकुन्द तो उसकी उतनी ही क्षति होगी, जितनी की शौरसेनी - प्राकृत से उत्पन्न ब्रजभाषा के महाकवि सूरदास को पृथक् कर देने से हिन्दी साहित्य की । शौरसेनी - प्राकृत तथा व्रजभाषा सहित उत्तर भारत की प्रमुख आधुनिक भाषाओ का परस्पर मे माँ-बेटी का सम्बन्ध है । अत हिन्दी - साहित्य, विशेषतया व्रजभाषा के साहित्य, को यदि उत्तरोत्तर समृद्ध बनाना है तो कुन्दकुन्द की भाषा एव साहित्य का अध्ययन एव प्रचार-प्रसार करना ही होगा ।

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