Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 43
________________ 52 / आचार्य कुन्दकुन्द वस्त्र-प्रकार कुन्दकुन्द भले ही अखण्ड दिगम्बर मुनि थे, किन्तु एक उदाहरण मे देखिए, उन्होने अपने समय के वस्त्रो का कैसा वर्गीकृत उल्लेख किया है । 1 उनके अनुसार उम समय भारत मे पाँच प्रकार के वस्त्रो का प्रचलन था- (1) अडज ( अर्थात् कोडो द्वारा निर्मित धागे के बने हुए अर्थात् रेशमी वस्त्र) 1 (2) वोडज ( अर्थात् कपास द्वारा निर्मित सूती वस्त्र ) । (3) रोमज ( अर्थात् जानवरो के रोम से बनाए गए ऊनी वस्त्र ) । ( 4 ) वक्कज ( अर्थात् पेड की छाल द्वारा बनाए गए वल्कल वस्त्र ) । (5) चर्मज ( अर्थात् मृग, व्याघ्र आदि के चर्म से बनाए गए वस्त्र ) । एक स्थान पर आचार्य कुन्दकुन्द ने सुई-तागे का भी लौकिक उल्लेख किया है । इससे सकेत मिलता है कि कुन्दकुन्द - काल मे सिलाई तथा कढाई की हस्तकला पर्याप्त लोकप्रिय थी और घरेलू उद्योग-धंधो मे उसका प्रमुख स्थान था । शिक्षा प्रारम्भिक शिक्षण के लिए कवि ने वाल्यावस्था को उपयुक्त वतलाया है । उन्होंने कहा है कि समाज के बच्चो के लिए प्रारम्भ मे ही निम्न विषयो का शिक्षण देना चाहिए ( 1 ) व्याकरण (भाषा के शुद्ध प्रयोग एव भाषा वैज्ञानिक अध्ययन की दृष्टि से), (2) छन्द (पद्यों के वर्ण एव मात्रा के वैज्ञानिक अध्ययन, सस्वर पाठ एव उसे सरस और गेय बनाने की दृष्टि से ) । 1 भावपाहुड, गाया - 79-81 (संस्कृत टीका मे दृष्टव्य ) 2 मूत्रपाहुड, गाथा - 3 3 शीलपाहुड, गाथा - 15-16

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