Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 68
________________ परिशिष्ट-2 कुन्दकुन्द-नवनीत षड्द्रव्य-वर्णन 1 जीवा पोग्गलकाया धम्माधम्मा तहेव आगास। अत्थित्तम्हि य णियदा अणण्णमइया अणुमहता ॥ (पञ्चास्तिकाय, 4) -जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, तथा आकाश ये अस्तित्व मे नियत, मनन्यमय और अणुमहान् हैं । अस्तिकाय का स्वरूप2 जेसि अत्थि सहाओ गुणेहिं सह पज्जएहिं विविहेहिं । ते होति अत्थिकाया णिप्पण्ण जेहिं तेल्लोक्क ॥ (पञ्चास्तिकाय, 5) -जिन्हे विविध गुणो और पर्यायो के साथ अपनत्व है, वे अस्तिकाय हैं, जिनसे तीनो लोक निष्पन्न हैं । अस्तिकायो का स्वभावअण्णोण्ण पविसता देता ओगासमण्णमण्णस्स। मेलता वि य णिच्च सग सभाव ण विजहति ॥ (पञ्चास्तिकाय, 7) -वे एक-दूसरे मे प्रवेश करते हैं, अन्योन्य अवकाश देते है,परस्पर मिल

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