Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 70
________________ 94 / आचार्य कुन्दकुन्द 19 - सभी परमाणुओ से मिश्रित पिण्ड 'स्कन्ध' कहलाता है, और स्कन्ध से आधा 'स्कन्धदेश', उससे भी आधा 'स्कन्ध प्रदेश' और अविभागी अश को 'परमाणु' कहा गया है । 20 स्कन्ध के विविध रूप- खध सयलसमत्थ तस्स दु अद्ध भणति देसो त्ति । अद्धद्ध च पदेसो परमाणू चेव अविभागी ॥ ( पञ्चा० 75 ) 21. --- पृथ्वी, पर्वत आदि प्रथम अति स्थूलस्थूल-स्कन्ध कहे गए हैं और घी, जल, तेल आदि दूसरे स्थूल-स्कन्ध हैं, यह जानना चाहिए। भूपव्वदमादीया भणिदा अदिथूलथूलमिदि खधा । थूला इदि विष्णेया सप्पो - जल-तेलमादीया ॥ ( नियमसार 22 ) 22 छायातवमादीया थूलेदर खदमिदि वियाणाहि । सुहुमथूलेदि भणिदा खधा चउरवखविसया य ॥ ( नियमसार 23 ) छाया, धूप आदि तीसरे प्रकार के स्थूल सूक्ष्म स्कन्ध हैं, और चार इन्द्रियो के विषयभूत स्कन्ध चौथे प्रकार के सूक्ष्म-स्थूल कहे गए है । हुमाहवंति खंधा पाओग्गा कम्मवग्गणस्स पुणो । व्विवदा खधा अदिसुमा इदि परूवेति ॥ ( नियमसार 24 ) - पुन कर्म-वर्गणा के योग्य स्कन्ध पांचवें प्रकार के अर्थात् सूक्ष्म होते है। उनके विपरीत कर्मवर्गणा के अयोग्य स्कन्ध छठवें-- अति सूक्ष्म होते हैं, ऐसा सर्वज्ञो ने कहा है ।

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