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आचार्य कुन्दकुन्द / 91
-र्यायो रहिन द्रव्य और द्रव्य रहित पर्यायें नही होती । श्रमणो ने दोनो के अनन्यभाव को प्ररूपित किया है ।
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- द्रव्य के विना गुण नही होते और गुणों के विना द्रव्य नही होता । इसलिए द्रव्य और गुणो का अव्यतिरिक्तभाव है ।
द्रव्य और गुणो का सम्बन्ध-
वेण विणा ण गुणा गुणेहिं दव्व विणा ण सभवदि । अव्वदिरित्तो भावो दव्वगुणाण हवदि तम्हा ॥
( पञ्चा० 13 )
सत्ता का अभाव नहीं होता
भावस्य णत्थि णासो णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो । गुणपज्जएसु भावा उप्पादव
पकुव्वति ॥
( पञ्चा० 15 ) --भाव का नाश नही है तथा अभाव का उत्पाद नही है । भाव ही गुणपर्यायो मे उत्पाद एव व्यय करते हैं ।
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द्रव्यों के गुण एव पर्यायें -
भावा जीवादीया जीवगुणा चेदणा य उवओगो । सुरणरणारयतिरिया जीवस्स य पज्जया बहुगा ॥
( पञ्चा० 16 )
- जीवादि ही 'भाव' हैं । जीव के गुण चेतना तथा उपयोग हैं और जीव की पर्यायें देव, मनुष्य, नारक, तिर्यञ्चरूप अनेक हैं ।
सत्ता का नाश नहीं होता-
माणुसत्तणेण णट्ठो देही देवो हवेदि इदरो वा । उभयत्थ जीवभावो ण णस्सदि ण जायदे अण्णो ॥
(पञ्चा० 17 )