Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 71
________________ आचार्य कुन्दकुन्द /97 -काल परिणाम से उत्पन्न होता है (अर्थात् व्यवहारकाल का माप जीव-पुद्गलो के परिणाम द्वारा होता है) । परिणाम द्रव्यकाल से उत्पन्न होता है । यह, दोनो का स्वभाव है। काल क्षणभगुर तथा नित्य है। आत्मा का स्वरूप-वर्णन 31 शरीर एवं जीव एक नहींववहारणओ भासदि जीवो देहो य हवदि खलु एक्को। ण दु णिच्छयस्स जीवो देहो य कदावि एक्कट्ठो । (समयसार 27) -व्यवहार-नय कहता है कि जीव और देह वस्तुत एक हैं और निश्चय नय के अभिप्राय के अनुसार तो जीव और देह कभी एक पदार्थ नहीं हैं। जीव का स्वरूप32 अरसमरूवमगध अव्वत्त चेदणागुणमसद्द । जाण अलिंगरगहण जीवमणिहिट्ठसठाण ।। (समयसार 49) ---जो रसरहित है, रूपरहित है, गन्धरहित है, इन्द्रियो के अगोचर है, चेतना-गुण से युक्त है, शब्दरहित है, किसी चिह्न या इन्द्रिय द्वारा जिसका ग्रहण नही होता और जिसका आकार बताया नहीं जा सकता, उसे जीव (आत्मा) जानो। 33 जानी जीव के भाव ज्ञानमय ही होते हैंकणयमया भावादो जायते कुडलादयो भावा। अयमयया भावादोजह जायते दु कडयादी।

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