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आचार्य कुन्दकुन्द / 73 'षट्कोणी' (छह कोण वाला) होना चाहिए । कुन्दकुन्द तथा अनेक परवर्ती
आचार्यों ने भी उसे पट्कोणी (छह कोण वाला) मानते हुए उसका विस्तृत विवेचन किया है । आचार्य कुन्दकुन्द ने कहा है
वादरसहुमगदाण खधाण पोग्गलो त्ति ववहागे।
ते होंति छप्पयारा तेलोक्कं जेहि णिप्पण्णं ॥ पचास्ति० 761 अर्थात् व्यवहार मे बादर और सूक्ष्म रूप से परिणत स्कन्ध ही पुद्गल है । वे छह प्रकार के होते है । तीनो लोक उन्ही से निष्पन्न हैं। 'नियमसार' (गाथा स० 21-23) मे कुन्दकुन्द ने पूर्ण वर्गीकरण करते हुए उनके उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं, जो सक्षेप मे इस प्रकार है1 स्थूल-स्थूल-जैसे पृथ्वी, पर्वत, लकडी, पत्थर आदि जो टूटने कटने
पर पुन जुड नही सकते। (Solids such as earth,
stone etc) 2 स्थूल- जैसे घी, दूध, तेल, पानी आदि तरल पदार्थ,जो बिखरने
के बाद पुन स्वत जुड़ सकते है। (Liquids like
butter, water or Oil etc) 3 स्थूल-सूक्ष्म-जैसे छाया, धूप, अन्धकार, चांदनी आदि (स्कन्ध), जो -
कि स्थूल ज्ञात होने पर भी जिनका छेदन-भेदन करना या हाथो से पकड सकना सभव नही । (Energy which manifests itself in forms of heat, light,
electricity and magnetism.) 4 सूक्ष्म-स्थूल-जैसे स्पर्श, रस, गन्ध, शब्द, वायु आदि जो कि सूक्ष्म
होने पर भी स्थूल जैसे प्रतीत होते हैं । (Gases like
air and others) 5 सूक्ष्म- जैसे कर्म-वर्गणा आदि (स्कन्ध), जो सूक्ष्म हैं, तथा जो
इद्रियो द्वारा अगोचर हैं। (Fine matter which is responsible for thought-activities and is
beyond sense-perception ) 6 सूक्ष्म-सूक्ष्म-जैसे कर्मवर्गणातीत द्वि-अणुक-स्कन्ध तक के स्कन्ध, जो