Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 62
________________ 80 / आचार्य कुन्दकुन्द 77 अको मे लिखा जा सकता है । काल का सबसे छोटा परिमाण 'समय' है | काल- द्रव्य के वर्तना ( वर्तना कराना), परिणाम (अपनी मर्यादा के भीतर प्रति समय परिवर्तित पर्याय), क्रिया ( हलन चलन रूप व्यापार से युक्त द्रव्य की अवस्था), परत्व (आयु की अपेक्षा वडा) और अपरत्व (आयु की अपेक्षा छोटा) कार्य अथवा उपकार माने गए हैं । भारतीय दर्शनो मे से जैनदर्शन ने काल- द्रन्य के विषय मे जितना गहन अध्ययन एव विश्लेषण किया है वह अन्य दर्शनो में नही । न्यायवैशेषिक दर्शनो मे यद्यपि उसका वर्णन किया गया है, किन्तु वह जैनदर्शन के उक्त व्यवहार-काल तक ही सीमित रह गया । निश्चय काल तक उनकी पहुँच नही हो सकी । कालद्रव्य और आधुनिक विज्ञान आधुनिक विज्ञान ने भी काल-द्रव्य के विषय मे खोजबीन की है और उनके निष्कर्ष भी लगभग वही हैं, जिनका प्रतिपादन जैनाचार्य सहस्राब्दियो पूर्व कर चुके हैं । सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक हैनशा का यह कथन विचारणीय 2. "Space (आकाश-द्रव्य), Matter (पुद् गल द्रव्य), Time (काल- द्रव्य) and Medium of motion ( धर्म- द्रव्य) are all separate in our minds We can not imagine that one of them could depend on another or be converted into another. " सुप्रमिद्ध फासीसी दार्शनिक वर्गशा ने तो स्पष्ट घोषित किया है कि "विश्व के विकास मे 'काल' का विशेष महत्त्व है। बिना उसके परिणमन एव परिवर्तन सम्भव नही । अत काल भी द्रव्य है । "3 1 पचास्तिकाय, गाथा-24 2 महावीर स्मृति ग्रन्थ, पृ० 126 3 वही, पृ० 126

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