Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 45
________________ आचार्य कुन्दकुन्द /55 सकेत किया है । उसके अनुसार शरीर मे तेल लगाकर धूलि वाले स्थान मे दण्ड-बैठक करना एव मुग्दर आदि अस्त्रो के द्वारा व्यायाम करना, उसके साथ ही साथ केला, तमाल, अशोक आदि वृक्षो के साथ अपनी शक्ति को आजमाने की प्रथा का सकेत दिया है। खाद्य एव पेय पदार्थ भोजन-वर्णन मे आचार्य कुन्दकुन्द ने किसी विशेष अनाज का उल्लेख नही किया है लेकिन तिल का उल्लेख अनेको वार किया है। इससे प्रतीत होता है कि उस समय भोजन मे तिल अपना विशेष स्थान रखता था। तिल बहुत ही गुणकारी पदार्थ होने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि तिल के तेल तथा तिल के बने हुए मोदक आदि व्यञ्जनो का प्रयोग सार्वजनीन रहा होगा । पेय पदार्थों में उन्होंने गुड मिश्रित दूध और इक्षुरस' का उल्लेख किया है । श्रमण सस्कृति मे इक्षुरस को अत्यन्त स्वास्थ्यवर्धक एव पवित्र पेय माना गया है। आदिनाथ तीर्थंकर ने प्रथम पारणा मे इक्षरस का ही आहार ग्रहण क्यिा था। उद्योग-धन्धे उद्योग-धन्धो मे कवि ने स्वर्णशोधन विधि रत्ननिर्माण, विषौषधिनिर्माण',आभूषण-निर्माण, कृषिके यन्त्र , रहट बनाने तथा दात्र (हसिया)10 1 समयसार, गाथा-236-246 2 सुत्तपाहुड, गाथा-18, वोधपाहुड, गाथा-54, शीलपाहुड, गाथा-24 3 भावपाहुड, गाथा-137 4 शीलपाहुड, गाथा-24 5 मोक्षपाहड, गाथा-24, शीलपाइड, गाथा-9 6 प्रवचनसार, गाथा-30, पचास्तिकाय, गाथा-33 7 शीलपाहुड, गथा-21 8 समयसार, गाथा-130-131, प्रवचनसार, गाथा 10 9 शीलपाहुड, गाथा-26 10 पचास्तिकाय, गाथा-48

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