________________
56/ आचार्य कुन्दकुन्द
निर्माण, भवन निर्माण, मूर्ति निर्माण, 'मोम निर्माण आदि के उल्लेख किए है। मनोरजन के साधन
मनोरजन के साधनो मे कवि ने गोष्ठी एव जन्त्र (अर्थात् चौपड) का उल्लेख किया है। इससे प्रतीत होता है कि उस समय विभिन्न प्रकार की गोष्ठियो का आयोजन उसी प्रकार किया जाता था, जिस प्रकार कि आजकल कवि-सम्मेलन, सगीत-सम्मेलन या साहित्यिक सम्मेलनो का आयोजन किया जाता है। कुन्दकुन्द-साहित्य मे कथा-वीजो के स्रोत
आचार्य कुन्दकुन्द ने यद्यपि कथा-साहित्य अथवा प्रथमानुयोगसाहित्य नही लिखा, क्योकि उनका समाज प्रवुद्ध था। कथा-कहानियो के माध्यम से सिद्धान्तो को समझाने की आवश्यकता तो केवल मन्द-बुद्धि वाले लोगो के लिए ही होती है। फिर भी कुन्दकुन्द ने कथाओ का वर्गीकरण अवश्य किया है। उनके अनुसार ससार की कथाओ को 4 वर्गो मे विभाजित किया जा सकता है -
(1) भक्त-कथा-(भक्ति की प्रेरणा जागृत करनेवाली कथा) (2) स्त्री-कथा-(स्त्रियो के प्रति आसक्ति जागत करनेवाली कथा) (3) राज-कथा)-(कपट-कूट एव राजनीति का विश्लेपण करने
वाली कथा) (4) चोर-कथा-(चौर्य-कला का निरूपण करनेवाली कथा) 1 बोधिपाहुड, गाथा 42-43 2 वोधिपाहुड, गाथा-3-4 3 भक्त्यादिसग्रह 2/10 4 प्रवचनसार, गाथा-66 5 लिंगपाहुड, गाथा-10 6 वारसअणुवेक्खा, गाथा-53