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आचार्य कुन्दकुन्द / 47
कुन्दकुन्द ने परम्परा प्राप्त जैन तीर्थ-भूमियो के रूप मे जिस भारतीय भूगोल की जानकारी दी है, वह ईसा पूर्व की प्रथम सदी की है। उन्होंने पर्वतराज हिमालय के गर्वोन्नत भव्य-भाल कैलाश पर्वत से लेकर जम्मू कश्मीर तक तथा गुजरात के गिरनार, दक्षिण के कुन्थलगिरि, पूर्वी भारत के सम्मेदगिरि तथा दक्षिण-पूर्व की कोटिशिला के चतुष्कोण के बीचोबीच लगभग 40 प्रधान नगरी, पर्वतो, नदियो एव द्वीपो के उल्लेख किए है । उसका वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है
उत्तर भारत - हस्तिनापुर, वाराणसी, मथुरा एव अहिच्छत्रा (नगरी), तथा अष्टापद (कैलाश पर्वत ) ।
पश्चिम भारत---लाटदेश, पलहोडी, (वर्तमान फलौंदी), वडग्राम, ऊर्जयन्त ( गिरनार पर्वत), गजपन्था, शत्रुजयगिरि, तुगी - गिरि (पर्वत) आदि ।
मध्य भारत--अचलपुर, वडवानी, वडनगर (नगर), मेढगिरि, पावागिरि, सिद्धवरकूट, चूलगिरि, रेशिन्दीगिरि, द्रोणगिरि, सोनागिरि, चेलना नदी एव रेवा नदी ।
पूर्व भारत -- चम्पापुरी, पावापुरी, सम्मेदशिखर, लोहागिरि ( लोहरदग्गा) ।
दक्षिण भारत --- कलिंग देश, वशस्थल, तारवर (नगर), कुन्थलगिरि, कोटिशिला, नागहृद ।
( सम्भवत ) पश्चिमोत्तर भारत -- ( जो आजकल पाकिस्तान मे है ) पोदनपुर, आशारम्य ।
कुन्दकुन्द एव कालिदास
भारत पर चीनी आक्रमण एवं पण्डित नेहरू के कथन के सन्दर्भ मेइस प्रसंग मे यहाँ यह ध्यातव्य है कि पिछले समय सन् 1962 मे जव चीन ने भारत पर पहला आक्रमण किया था और हिमालय के कुछ भाग को उसने चीनी क्षेत्र घोषित किया था, तब तत्कालीन प्रधानमन्त्री प० जवाहर लाल नेहरू ने वहुत ही ओजस्वी स्वर मे महाकवि कालिदास ( 5वी सदी) की " अस्त्युत्तरस्या दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज '