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आचार्य कुन्दकुन्द / 43
कल्याणकारी राष्ट्र-निर्माण की दृष्टि से कुन्दकुन्द द्वारा निर्शित जैनाचार अथवा सर्वोदय का सिद्धान्त आज भी उतना ही प्रासगिक है, जितना कि आज से दो हजार वर्ष पूर्व । विश्व की विषम समस्याओ का समाधान उसी से सम्भव है।
राष्ट्रीय भावात्मक एकता एवं अखण्डता के लिए प्रयत्न-आचार्य कुन्दकुद ने तीसरा महत्त्वपूर्ण कार्य किया राष्ट्रीय अखण्डता एव एकता का । वे स्वय तो दक्षिणात्य थे। उन्होने वहां की किसी भापा मे कुछ लिखा न्या नही, इसकी निश्चित सूचना नही है। तमिल के पचमवेद के रूप मे प्रसिद्ध थिरुक्कुरल नामक काव्य-ग्रन्थ का लेखन उन्होने किया था, ऐसी कुछ विद्वानो की मान्यता है किन्तु यह मान्यता अभी तक सर्वसम्मत नही हो पाई है। फिर भी यदि यह मान भी लें कि वह उन्ही की रचना है तो भी उन्होने बाद मे प्रान्तीय सकीर्णता से ऊपर उठने का निश्चय किया और शूरसेन देश (अथवा मथुरा) के नाम पर प्रसिद्ध शौरसेनी-प्राकृत-भाषा का उन्होंने गहन अध्ययन किया तथा उसी मे उन्होने यावज्जीवन साहित्यरचना की। जीवन की यथार्थता का चित्रण, भाषा की सरलता, सहज वर्णन-शैली एव मार्मिक अनुभूतियो से ओत-प्रोत रहने के कारण वह साहित्य इतना लोकप्रिय हुआ कि प्रान्तीय, भाषाई एव भौगोलिक सीमाएं स्वत ही समाप्त हो गई। सर्वत्र उसका प्रचार हुआ। आज भी पूर्व से पश्चिम एव उत्तर से दक्षिण कही भी जाएं, आचार्य कुन्दकुन्द सभी के अपने हैं । उनके लिए न दिशाभेद है, न भाषाभेद और न प्रान्तभेद, न वर्गभेद और न ही वर्ण-भेद । ___ इस प्रकार एक दाक्षिणात्य सन्त ने अपने एक भाषा-प्रयोग से समस्त राष्ट्र को एकवद्ध कर चमत्कृत कर दिया । आधुनिक प्रसग मे भाषा-प्रयोग के माध्यम से राष्ट्र को जोड़े रखने का इससे वहा उदाहरण और कहाँ मिलेगा?
ब्रजभापा की समृद्धि के लिए कुन्दकुन्द साहित्य के अध्ययन की अत्यावश्यकता
शौरसेनी-प्राकृत के क्षेत्र से यदि कुन्दकुन्द को पृथक् कर दिया जाय,