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4.राष्ट्रीय भावात्मक एकता एवं अखंडता
के क्षेत्र मे आचार्य कन्दकुन्द
कुन्दकुन्द-साहित्य के अद्यावधि अध्ययन से यह तो स्पष्ट ही है कि उन्होने जैन दर्शन, अध्यात्म एव आचार के क्षेत्र मे मौलिक चिन्तन किया तथा परवर्ती आचार्य-लेखको के लिए वे तेजोद्दीप्त प्रकाश-स्तम्भ सिद्ध हुए। किन्तु इसके अतिरिक्त भी उन्होंने राष्ट्रीय भावात्मक एकता एव अखण्डता, स्वस्थ समाज एव राष्ट्र-निर्माण,लोकप्रिय जन-भाषा प्रयोग तथा समकालीन भारतीय संस्कृति एव भूगोल को भी प्रकाशित किया और इस प्रकार विविध सकीर्णताओ से ऊपर उठकर उन्होंने अपने निष्पक्ष चिन्तक-लेखक के सार्वजनीन रूप को भी प्रकट किया है। यहाँ उन तथ्यो पर प्रकाश डालने का प्रयल किया जा रहा है । साहित्य-लेखन के माध्यम से कुन्दकुन्द के राष्ट्रीय मूल्य के निम्न कार्य विशेष महत्त्वपूर्ण हैं1 स्वरचित साहित्य मे समकालीन लोकप्रिय जनभाषा-शौरसेनी
प्राकृत का आजीवन-प्रयोग, 2 सर्वोदयी सस्कृति का प्रचार, तथा 3 गष्ट्रीय भावात्मक एकता एव अखण्डता के लिए प्रयत्न ।
समकालीन जनभाषा-प्रयोग-आधुनिक दृष्टि से यदि विचार किया जाय तो आचार्ग कुन्दकुन्द अपने समय के एक समर्थ जनवादी सन्त-विचारक एव लेखक थे । इम कोटि का लेखक विना किसी वर्गभेद एव वर्णभेद की भावना के, प्रत्येक व्यक्ति के पास पहुंचने का प्रयत्न करता है और उसके सुख-दुख की जानकारी प्राप्त कर उन्हें जीवन के यथार्थ सुख-सन्तोप का