Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 15
________________ 10/आचार्य कुन्दकुन्द विस्मृति के घेरे मे परोपकारी महापुरुष, विशेषतया आध्यात्मिक सन्त, लोकख्याति से प्राय दूर ही रहते आए हैं। यही कारण है कि उनके विशिष्ट कार्यों को तो सभी जानते हैं किन्तु उनके सर्वागीण जीवन-वृत्त को जानने के साधन अज्ञात-जैसे ही रह जाते हैं । इस श्रेणी मे केवल कुन्दकुन्द ही नही, गुणधर, धरसेन, नागहस्ति, उच्चारणाचार्य, वट्टकेर, शिवार्य, कार्तिकेय, उमास्वाति, समन्तभद्र प्रभृति श्रेष्ठ विचारको के नाम भी गिनाए जा सकते हैं। यही क्यो, महर्षि वाल्मीकि, व्यास, भास, शूद्रक, कालिदास, कबीर, सूर, जायमी आदि की भी वही स्थिति है। हम इन सभी के निर्विवाद प्रामाणिक जीवनवृत्तो से दीर्घकाल तक प्राय अनभिज्ञ ही रहे और सम्भवत आगे भी अनभिज्ञ ही रह जाते, किन्तु धन्यवाद है शोध-खोज की उस आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति को तथा उन शोधार्थी तपस्वी महामनीपियो को, जिन्होंने प्रकारान्तर से कुन्दकुन्द जैसे युगप्रधान महापुरुषो के जीवन-वृत्तो की जानकारी के उपाय भी खोज निकाले । ऐसे वैज्ञानिक उपायो के मूलाधार प्रायः निम्न प्रकार रहे हैं 1 शिलालेखो, पट्टावलियो तथा ताम्र-पत्रो मे उपलब्ध साक्ष्य, 2 आचार्यों के साहित्य मे समकालीन विविध परिस्थितियो सम्वन्धी सन्दर्भ, 3 परवर्ती साहित्य मे उपलब्ध तद्विषयक सन्दर्भ, एव 4 टीकाकारो द्वारा अकित सूचनाएं एव पुष्पिकाएँ। कुन्दकुन्द साहित्य का सर्वप्रथम प्रकाशन आचार्य कुन्दकुन्द का यद्यपि विशाल साहित्य उपलब्ध है, किन्तु उसमे उन्होंने अपना किमी भी प्रकार का परिचय नही दिया । दीर्घकाल तक स्वाध्यायप्रेमी उनकी 'समयसार' जैसी रससिक्त रचनाओ के अमृत-कुड मे डूबकर उनका परिचय प्राप्त करने के लिए अत्यन्त व्यग्र रहे। यह स्थिति सन् 1900 ई० के आसपास तक रही। उस समय तक कुन्दकुन्द का सम्पूर्ण साहित्य प्रकाशित नहीं हुआ था। उनके उपलब्ध हस्तलिखित ग्रन्यो का ही स्वाध्याय किया जाता था। युग की तोत्र मांग को देखकर-तथा

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