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16/ आचार्य कुन्दकुन्द
निवास-स्थल आचार्य कुन्दकुन्द आन्ध्र प्रदेश के निवासी थे-जन्म-स्थान सम्बन्धी पूर्वोक्त कथा रोचक है, इसमे सन्देह नही। किन्तु शोध-विद्वानो ने उसे अधिक महत्त्व नही दिया, क्योकि विविध प्रमाणो के आधार पर उनका विश्वास है कि कुन्दकुन्द दक्षिण-भारत के निवामी थे, उत्तर भारत के नही । जवकि उक्त कथा पूर्णतया उत्तर-भारत से ही सम्बन्ध रखती है । ___श्रवणबेलगोल के अनेक शिलालेखो तथा अन्य साक्ष्यो के आधार पर कुन्दकुन्द दक्षिण भारत के सिद्ध होते हैं । इन साक्ष्यो के अनुसार उनका जन्म-स्थल कोण्डकुन्दपुर था, जिसका अपरनाम कुरुमरई था। यह स्थान आन्ध्र प्रदेश के पेदथनाडु जिले में पड़ता है। उनके पिता का नाम कर्मण्डु एव माता का नाम श्रीमती था। उन्हे जब दीर्घकाल तक मन्तति की प्राप्ति नही हुई, तव उन्होंने एक तपस्वी को कुछ दान दिया, जिसके फलस्वत्प उन्हे एक स्वस्थ एव सुन्दर पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । जन्मस्थल के नाम पर उसका नाम कोण्डकुन्द अथवा कुन्दकुन्द रखा गया।
कुन्दकुन्द वचपन मे ही प्रखर-प्रतिभा मम्पन्न थे। उन्होने युवावस्था मे दीक्षा धारण की और शीघ्र ही आचार्य पद प्राप्त किया।
चमत्कार सम्बन्धी उल्लेख
महापुरुषो का चरित्र इतना निश्छल एव उनकी चित्तवृत्ति इतनी एकाग्र तथा शान्त होती है कि जगत् के प्राणी ही नहीं, बल्कि स्वर्ग के विक्रियाऋद्धिधारी देव भी उनकी ओर आकर्षित रहते हैं और उनकी सेवा के अवमर खोजते रहते है । महापुरुषो को सम्भवत इन महज लौकिक आकर्षणो का भान भी नही रहता किन्तु भक्तगण इनकी चर्चाएं विविध माध्यमो से करते रहे हैं।
____1 दे० एपिग्राफिया कर्नाटिका, खण्ड 5 तथा पञ्चास्तिकायसार,
भूमिका पृ० 5 (प्रो० ए० चक्रवर्ती, भारतीय ज्ञानपीठ, सस्करण1975 ई०)