Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 17
________________ आचार्य कुन्दकुन्द / 13 मे अपना नाम कुन्दकुन्द बतलाया है । किन्तु कुन्दकुन्द कृत पाहुड-साहित्य के टीकाकार श्रुतसागर सूरि ( 15वी सदी) ने अपनी टीका की पुष्पिकाओ मै उनके 5 नाम बतलाए है। उम उल्लेख से विदित होना है कि आचार्य कुन्दकुन्द के अन्य नाम पद्मनन्दि, वक्रग्रीव, एनाचार्य एव गृद्धपिच्छ भ थे। श्रुतसागर के उल्लेख का समर्थन विजयनगर के शक स० 1307 ( मन् 1229 ई०) के एक शिलालेख से भी होता है । यह आश्चर्य का विषय हैं कि श्रुतसागरसूरि को छोड़कर कुन्दकुन्द के -अन्य टीकाकारो ने उनके कुन्दकुन्द अथवा पद्मनन्दि नाम तो बालाए हैं किन्तु अन्य नामो की कोई चर्चा नही की । आचार्य जयमेन ने उन्हें 'पद्मनन्दि' इस नाम से स्मरण करते हुए लिखा है कि "जिन्होने अपने बुद्धिरूपी सिर से महान् तत्त्वो से भरे हुए प्रस्तुत 'समयप्राभृन' (समयमार ) रूपी पर्वत को उठाकर भव्य जीवो को समर्पित कर दिया, वे महर्षि पद्मनन्दि (सदा ) जयवन्त रहे ।"" इन्द्रनन्दि ने भी अपने श्रुनावतार मे उन्हें कौण्डकुन्दपुर का पद्मनन्दि 1 इदि णिच्ववहारज भणिय कुन्दकुन्द मुणिणा हे । जो भाव सुद्धमणो सो पावइ परमणिव्वाण | गाथा 91॥ 2 श्रीमत्पद्मनन्दिकुन्दकुन्दाचार्य वक्र प्रीवा चायँलाचार्य गृढ पिच्छाचार्य - नाम पचकविराजितेन (श्रुनमागर कुन पद्माभृन टीका की पुष्पिकायें, वाराणमी 1918 ई० ) 3 आचार्य कुन्दकुन्दाख्यो वक्रग्रीवो महामुनि । एलाचार्यो गृद्धपिच्छ इति तन्नाम पचधा ॥ * जयउ रिसपउमणदी जेण महातच्च पाहुणस्सेलो । बुद्धि सिरेणुद्ध रियो ममप्पियो भव्वलोयस्स ॥ ( समयप्राभृत- सनातन जैन ग्रन्थमाला, पृ० 212) 15

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