Book Title: Kundakundadeva Acharya
Author(s): Rajaram Jain, Vidyavati Jain
Publisher: Prachya Bharti Prakashan

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Page 22
________________ - 22 / आचार्य कुन्दकुन्द इस ग्रन्थ के टीकाकार आचार्य जयसेन ने अपनी तात्पर्य वृत्ति नाम की aat मे बतलाया है कि पञ्चास्तिकाय का प्रणयन पिवकुमार महाराज जैसे सक्षेप रुचिवाले शिष्यो के लिए जैनधर्म का प्राथमिक ज्ञान कराने हेतु किया गया है । इस ग्रन्थ मे कुल 173 गाथाएँ है । उक्त ग्रन्थ का वर्ण्य विषय दो श्रुतस्कन्धो मे विभक्त है । प्रथम तस्कन्ध की 153 गाथाओ मे द्रव्य के स्वरूप का प्रतिपादन कर शुद्धतत्त्व का निरूपण किया गया है और द्वितीय श्रुतस्कन्ध की 20 गाथाओ मे पदार्थ का वर्णन कर शुद्धात्मतत्त्व की प्राप्ति का मार्ग बतलाया गया है । प्रस्तुत ग्रन्थ पर आचार्य अमृतचन्द्र ( 10वी सदी) कृत 'समयव्याख्या ' एव आचार्य जयसेन द्वितीय ( 12वी सदी) कृत 'तात्पर्यवृत्ति' नामक संस्कृत टीकाएँ महत्त्वपूर्ण मानी गई हैं। 2 पवयणसारो ( प्रवचनसार ) प्रस्तुत रचना मे जिनेन्द्र के प्रवचनो के सार का सीधी-सादी सरल भाषा-शैली मे अकन किया गया है । यह ग्रन्थ कुन्दकुन्द के अन्य ग्रन्थो की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय एव लोकभोग्य सिद्ध हुआ है । इसका मूल वर्ण्यविषय है प्रमाण एव प्रमेय तत्त्वो का प्रतिपादन | इसमे कुल 275 गाथाएँ है । ग्रन्थ की विषयवस्तु निम्नलिखित तीन अधिकारो मे विभक्त है (1) ज्ञानतत्त्व-प्रज्ञापन — इसमे शुद्धोपयोग, अतीन्द्रियज्ञान, आत्मा एव ज्ञान की एकता आदि का सरस वर्णन किया गया है । यह वर्णन 92 गाथाओ मे समाहित है । (2) ज्ञेयतत्त्व - प्रज्ञापन - इसमे उत्पाद, व्यय एव ध्रौव्य रूप सत्ता एव द्रव्य-वर्णन, जीव- पुद्गल - वर्णन, निश्चय व्यवहार दृष्टि एव शुद्धात्म आदि ज्ञेय पदार्थों का 108 गाथाओ मे वर्णन किया गया है । (3) चरणानुयोगसूचक चूलिका - इस प्रकरण मे मोक्षमार्ग के साधन एव शुभोपयोग की 75 गाथाओ मे चर्चा की गई है । 1 "अथवा शिवकुमार - महाराजादि - सक्षेपरुचिशिष्यप्रतिबोधनार्थ विरचिते पचास्तिकाय प्राभृतशास्त्रे "देखिए जयसेन कृत पचास्तिकाय की तात्पर्यवृत्ति - टीका का प्रारम्भिक अश । ..

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