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में आयोजित प्रशिक्षण शिविर के अवसर पर अनेक विद्वानों एवं अन्य साधर्मी जनों को इसे टाइप कराके उसकी प्रतियाँ देकर आवश्यक सुझाव देने का अनुरोध किया गया । बालब्रह्मचारी सुमतिप्रकाशजी, पण्डित रतनचन्दजी भारिल्ल जयपुर, पण्डित दिनेशभाई शाह मुम्बई, पण्डित मन्नूलालजी सागर, पण्डित राकेशकुमारजी शास्त्री, नागपुर एवं श्रीमती राजकुमारी जैन जयपुर ने अपने बहुमूल्य सुझावों से अनुग्रहीत किया। सर्वाधिक महत्वपूर्ण सुझाव श्री रजनीभाई गोसलिया वाशिंगटन से प्राप्त हुए। इन सभी महानुभावों के सुझावों पर विचार करके सभी को आत्मसात् करते हुए पुस्तक को अन्तिमरूप दिया गया और पुनः टाइप कराया गया। इन सभी विद्वज्जनों का मैं हार्दिक आभारी हूँ।
जैन अध्यात्म स्टडी आफ नार्थ अमेरिका (JANA) के संयोजक श्री अतुलभाई खारा ने यह कृति अमेरिका के साधर्मी भाइयों को वितरित कराने की भावना व्यक्त करते हुए इसे दीपावली 2003 तक गुजराती और हिन्दी में प्रकाशित करने की प्रेरणा दी, जिसके फलस्वरूप अन्य सभी कार्यों को गौण करके यही कार्य सम्पन्न करने का प्रयास किया गया। अतः यह कृति आपके कर-कमलों में विद्यमान है। ___वास्तव में इसमें जो कुछ भी है वह परम पूज्य पण्डित प्रवर आचार्यकल्प टोडरमलजी एवं पूज्य गुरुदेवश्री का है, मेरा कुछ भी नहीं है। अतः इन दोनों महापुरुषों के चरणों में विनम्र प्रणाम समर्पित करके उनका उपकार स्मरण करता हूँ।
इसप्रकार का यह मेरा प्रथम प्रयास है, अतः इसमें बहुत सी कमियाँ होना स्वाभाविक है। विद्ववज्जनों एवं विज्ञ पाठकों से विनम्र अनुरोध है कि वे उनकी
ओर ध्यानाकर्षित करने की कृपा अवश्य करें, ताकि उन्हें दूर करने का प्रयास कर सकूँ । इस कृति के माध्यम से हम सभी अभिप्राय के तल में छुपी हुई भूलों को पहचान कर उसे समूल नष्ट करके मोक्ष-महल की प्रथम सीढ़ी पर कदम रखने का पुरुषार्थ प्रगट करें – यही हार्दिक कामना है।
- अभयकुमार जैन
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