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कोष विश्व मानवता के लिए उन्मुक्त भाव से दान करते जा रहे हैं, यह उनके साहित्यकार का संत तत्त्व है ।
खिलती कलियां, मुस्कराते फूल' में विश्वजीवन की अनुश्रुतियां और अनुभूत जीवन-स्फूर्तियां अपनी मर्मोद्घाटिनी अभिव्यक्ति लिए अंकित हुई है। इसके संपादन के लिए श्री देवेन्द्र मुनि जी ने मुझे उत्साहित किया, अपनी लोकोपकारी दृष्टि का संकेत दिया, जिसके लिए मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूँ। अपने अध्ययन व अनुभव से संकलित नोट्स एवं श्रुतियों के आधार पर मुनि श्री जीने जो कथासूत्र दिए,मैंने उन्हें भाव-भाषा-शैली की कूची से कुछ हल्का, कुछ गहरा रंग दिया है । आशा करता हूँ पाठकों को वह रुचिकर प्रतीत होगा, और मानसिक खाद्य के अभाव की किंचित् आपूर्ति कर सकेगा-इसी विश्वास के साथ.......
आगरा १-१०-७०
-श्रीचन्द सुराना 'सरस'
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