Book Title: Khartargaccha Pattavali Sangraha Author(s): Jinvijay Publisher: Babu Puranchand Nahar View full book textPage 8
________________ [ 1 ] संगृहीत की जा सकती हैं और उनसे विस्तृत और श्रृंखलाबद्ध इतिहास तैयार किया जा सकता है। यदि समय अनुकूल रहा, तो 'सिंघो जैन ग्रंथमाला' में एक-आध ऐसा बड़ा संग्रह जिज्ञासुओंको भविष्यमें देखनेको मिलेगा। बाबू श्री पूरणचंदजी नाहरने बड़ा परिश्रम और बहुत द्रव्य व्यय करके जैसलमेरके जैन शिलालेखोंका एक अपूर्व संग्रह प्रकाशित कर इस विषयमें विद्वानों और जिज्ञासुओंके सम्मुख एक सुन्दर आदर्श उपस्थित कर दिया है। इसके अवलोकनसे, राजपुतानेके जूने पुराने स्थानोंमें जैनोंके गौरवके कितने स्मारक-स्तंभ बने हुए हैं तथा उनसे हमारे देशके ज्वलन्त इतिहासकी कितनी विशाल-स्मृद्धि प्राप्त हो सकती है इसकी कुछ कल्पना आ सकती है। इस प्रथम प्रायः खरतरगच्छके ही इतिहासकी बहुत सामग्री संगृहीत है जो इस पट्टावलिवाले संग्रहकी बातोंको पुष्टि करती है तथा कई बातोंकी पूर्ति करती है। इन सब बातोंके दिग्दर्शनकी यह जगह नहीं है। ऐसे संग्रहोंके संकलन करनेमें कितना परिश्रम आवश्यक है वह इस विषयका विद्वान् ही जान सकता है विद्वानेव जानाति विद्वज्जनपरिश्रमः। जैसलमेरके लेखोंका ऐसा सुन्दर संग्रह प्रकाशित कर तथा इस पट्टावली संग्रहको भी प्रकट करवाकर श्रीमान् नाहरजीने खरतरगच्छकी अनमोल सेवा की है एतदर्थ आप अनेक धन्यवादके पात्र हैं। आपका इस प्रकार जो स्नेहपूर्ण अनुरोध हमसे न होता तो यह संग्रह योंही नष्ट हो जाता और इसके तैयार करने में जो कुछ हमने परिश्रम किया था वह अकारण ही निष्फल जाता अतः हम भी विशेष रूपसे आपके कृतज्ञ हैं। शान्तिनिकेतन सिंघी जैन ज्ञानपीठ जिनविजय पर्युषणा प्रथम दिन, सं० १९८७ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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