Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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लिये वे उस समय विकारी रहते हैं और संश्लेष के हटते ही वे अवि-कारी हो जाते हैं। ___जीव और पुद्गलों का अन्य द्रव्य से संश्लिष्ट होना इनकी योग्यता पर निर्भर है । अन्य द्रव्यों में यह योग्यता नहीं है । ऐसी योग्यता का निर्देश करते हुए जीव में मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग रूप तथा पुद्गल में उसे स्निग्ध और रूक्ष गुण रूप बतलाया है । जीव मिथ्यात्व आदि के निमित्त से अन्य द्रव्य से बंधता है और पुद्गल स्निग्ध और रूक्ष गुण के निमित्त से अन्य द्रव्य से बंध को प्राप्त होता है।
जीव में मिथ्यात्वादि रूप योग्यता संश्लेषपूर्वक ही होती है और इससे वह कर्मवर्गणाओं को ग्रहण करके मलिन बनता है। परन्तु वह कर्मवर्गणाओं को ग्रहण कब से कर रहा है, इन दोनों का सम्बन्ध कवसे जुड़ा ? तो इसका समाधान अनादि शब्द के द्वारा किया जा सकता है । क्योंकि आदि मानने पर अनेक विसंगतियां आती हैं । जैसे -- सम्बन्ध यदि सादि है तो पहले आत्मा है या कर्म हैं या युगपद् दोनों का सम्बन्ध है । पहले प्रकार में शुद्ध आत्मा कर्म करती नहीं है । दूसरे भंग में कर्म कर्ता के अभाव में बनते नहीं हैं। तीसरे भंग में युगपद् जन्म लेने वाले कोई भी दो पदार्थ परस्पर कर्ता-कर्म नहीं बन सकते हैं । इसलिये कर्म और आत्मा का अनादि सम्बन्ध मानना युक्तिसंगत है।
हरिभद्रसूरि ने योगशतक श्लोक ५५ में आत्मा और कर्म के अनादित्व को समझाने के लिए एक बड़ा ही सुन्दर उदाहरण दिया है कि अनुभव तो वर्तमान समय का करते हैं, फिर भी वर्तमान अनादि है क्योंकि अतीत अनन्त है और कोई भी अतीत वर्तमान के बिना नहीं बना । यह वर्तमान का प्रवाह कब से चला आ रहा है, इस प्रश्न का उत्तर अनादि के द्वारा ही दिया जाता है । इसी प्रकार कर्म और
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