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प्रस्तावना ]
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तेना करनारनो नाश करे छे माटे कूर्मशिलाने एक सूत्र प्रमाण ईशान दिशानी तरफ स्थापवी.
उक्त विधान शिवालय ने आश्रित छे, प्रचलित कूर्मशिलाना मान करतां आमां जणावेल शिलामान घणुं अधिक छे ए वात ध्यानमा लेवा जेवी छे.
लिंगमाने प्रासादमान
अन्धीश्वतुर्गुणाश्च स्युः, प्रासादा लिंगमानतः । अर्धेन लिंगदैर्मेण भित्तया विस्तृताः क्रमात् ॥” अर्थात् — शिव प्रासादो लिंगना उदयमानथी चतुर्गुणा, पांच गुणा अने छ गुणा माननां होय छे, अने लिंगनी लंबाईना अर्धा भागनी विस्तारमां भींतो करवी.
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द्वारमानना विशेषप्रकारो
आज काल प्रासादनुं द्वारमान शिल्पीओ प्रासादमंडन, क्षीराणैव, अपराजित वगेरेमां लख्या प्रमाणे
" एकहस्ते तु प्रासादे, द्वारं स्यात् षोडशांगुलम् ।" इत्यादिना क्रम प्रमाणे करे छे, पण आमां ज्येष्ठ कनिष्ठादिनो विचार करतो नथी, उक्त द्वारोदयना मानमां एक वे आंगल न्यूनाधिक करी आय मेलवी द्वारमान निश्चित करी ले छे, कया देवना प्रासादना द्वारनो उदय - विस्तार केटलो होवो जोइये ए प्रायः जोवातुं नथी अने शिवद्वारनी जेम ज कोइ पण देवना प्रासादनो द्वारोदय बनायी दे छे. खरी रीते जिनद्वार उदयार्थ प्रमाणे नहि पण विस्तामां ते अधिक हो जोइये, केमके शिवद्वार उदयार्ध विस्तृत होवामां कशी हरकत नथी. शिवलिंग अथवा शिवमूर्तिने माटे शिवद्वारनो ते विस्तार ओछो नथी पण जिनप्रतिमा तो मूलनायक रूपे बेठी ज होय, वली तेने परिकर पण साथे होय तेथी जिनप्रतिमा माटे उदया
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