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प्रस्तावना] अखंड प्रासादादिने ताडीने नवु बनाववामा दोष छे. एम छतां जो शिल्पी बनावशे तो ते मृत्यु पामशे, आ विधि अभिन्न (जिन गौरी गणेशादिनां) प्रासादोने विषे छ भिन्न (जेने विषे भिन्न दोष गणातो नथी आवा शिव सूर्यादिना) प्रासादोने विषे उक्त दोष होतो नथी.
(१०) दण्ड-ध्वजविषये मतान्तरो“जीवदैऱ्यासमोदण्डः, स्थौल्यं तद्वजितांशतः। __चूलकान्तरदेवानां, स्थापनीयः प्रमाणतः॥" . अर्थ-प्रासाद पुरुषना हृदय भाग जेटलो लंबो अने ते उपर छुटैला आंवलसारा नीचेना भाग जेटलो जाडो आंवलसारानी बहारनी फरके देवमंदिरो उपर प्रमाणोपेत दंड स्थापवो
विवरण-तात्पर्यार्थ ए छे के मंडोवराना प्रहार थर उपरथी बांधणीना तलांचा सुधीनुं शिखरन जे प्रमाण होय ते प्रमाणनो ते प्रासोदनो दंड करवो अने तेनी जाडाई शिखरनो जेटलो भाग ग्रीवा स्थाने छोड्यो छे तेटली करवी दंड जेना आधारे राखवो छे ते स्थान आंवलसाराथी सहेज बहारना भागे होय.
ध्वजाधारनो. स्पष्ट स्थान निर्देश" शिखरस्य शरांशेन, चतुर्थेन गुणेन वा।
उत्तमादिध्वजाधारं, मस्तकार्थेन वा क्वचित् ॥"
अर्थ-आंवलसारा नीचेना शिखरनो उंचाइना एकपंचमांश एक चतुर्थाश अने एक तृतीयांश नीचे ध्वजदंड रोपवानु स्थान करवं कनिष्ठ दंडनु स्थान पंचमांशे मध्यदंडनु स्थान चतुर्थीशे अने जेष्ठ दंडन स्थान एक तृतीयांश नीचे करवू, कोइना मतमा मस्तक सुधीना शिखरना अर्धा भागे, एक तृतीयांशे तथा एक चतुर्थाशे
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